कंगाल पाकिस्तान और आतंकवादी सनक | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है की पाकिस्तान सामाजिक रूप से टूटा हुआ और आर्थिक तौर पर कंगाल देश है| साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक, वर्ष २०००  से अब तक आतंकी घटनाओं में वहां ६३७२४ मौतें हो चुकी है| इसके बावजूद पाकिस्तान  भारत और अन्य पड़ोसी देशों को अस्थिर करने का उद्देश्य से बाज नहीं आ रहा है | अस्थिरता पाकिस्तान की रक्षा और विदेश नीति का आधारभूत पहलू है| बीते सात दशकों में वहां शासन पर पाकिस्तानी सेना का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण रहा है | जो निरंतर जारी है | 

सेना ने कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ द्वारा समूचे दक्षिणी एशिया में आतंकियों, अलगाववादियों, तस्करों और अपराधियों का बड़ा संजाल बनाया है| भारत और अफगानिस्तान ने लगातार इसकी शिकायत की है| इस नेटवर्क का विस्तार इन दो देशों के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में भी है| यहां तक कि यूरोप और अमेरिका में हुई अनेक घटनाओं में पाकिस्तान-समर्थित आतंकी और चरमपंथी गिरोहों का हाथ होने के मामले सामने आये हैं| अब वैश्विक आधार पर कुछ होना चाहिए | 

पाकिस्तान अपने वर्चस्व को बनाने-बचाने के लिए आइएसआइ ने विभिन्न हिस्सों में आतंकी समूहों को पाला-पोसा रहा है| पिछले साल संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ऐसे समूहों की सूची में पाकिस्तान में सक्रिय १३९  संगठनों का नाम उजागर हुए  है| इनमें अल-कायदा के सरगना अल-जवाहिरी से लेकर तहरीके-तालिबान, लश्करे-तैयबा, जैशे-मोहम्मद, हक्कानी नेटवर्क से लेकर दाऊद इब्राहिम तक शामिल हैं|इन गिरोहों में से कुछ कश्मीर में और कुछ अफगानिस्तान में वारदातों को अंजाम देते हैं तथा अन्य समूह पाकिस्तान के भीतर अल्पसंख्यकों, उदारवादी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा आम नागरिकों को निशाना बनाते रहते हैं| आतंकवाद को राजनीतिक और कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की पाकिस्तानी राजकीय नीति का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा है| 

सच मायने में पाकिस्तान सामाजिक रूप से टूटा हुआ और आर्थिक तौर पर कंगाल देश है| साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक, वर्ष २००० से अब तक आतंकी घटनाओं में वहां ६३ ७२४ मौतें हो चुकी हैं| इस्लामाबाद, रावलपिंडी, लाहौर, कराची, क्वेटा, पेशावर जैसे बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक ये गिरोह सक्रिय हैं|

अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार, २०१० तक पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत से अधिक थी| विभिन्न देशों से मिली वित्तीय मदद और व्यापक आर्थिक विषमता जैसे कारकों का संज्ञान लेते हुए भी कहा जा सकता है कि उसके पास आर्थिकी को पटरी पर रखने के  मौके थे, परंतु पाकिस्तानी सत्ताधीश तो धार्मिक चरमपंथियों को बढ़ावा देने तथा पड़ोसियों के विरुद्ध छद्म युद्ध करने में लगे हुए थे| अनेक आधिकारिक अध्ययनों ने इंगित किया है कि अस्सी के दशक के बाद से आतंकवाद ने अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है| पाकिस्तानी आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि २००१  के बाद से आतंक से लड़ने में १२३  बिलियन डॉलर की चपत लगी है| बीते चार दशकों में निवेश और सहायता में भी लगातार गिरावट दर्ज की गयी है| इन तथ्यों के बावजूद सरकारों ने आतंक को प्रश्रय देने की नीति पर पुनर्विचार नहीं किया  है| पाकिस्तान का  यह रवैया एक राष्ट्र-राज्य के रूप में उसके अस्तित्व के लिए ही आत्मघाती ही कहा  जायेगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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