सीएम कमलनाथ ने बताया: बेरोजगारों बैंड बजाने की ट्रेनिंग क्यों दे रहे हैं | BLOG by CM KAMAL NATH

हर समाज और समुदाय अपनी परम्परागत कला और कौशल से अपनी जीविका कमाता है। अपनी कला और कौशल पर उसे गर्व भी होता है। यदि उसे आर्थिक आधार न मिले तो कला और कौशल दोनों खतरे में पड़ जायेंगे। हम सूक्ष्म आर्थिक गतिविधियों की गिनती भले ही नही कर पाएं लेकिन उनसे जीविका चलाने में मदद मिलती है। 

प्रदेश का दौरा करते हुए मुझसे समुदाय विशेष के कुछ युवा मिले जिन्होंने कहा कि वे बेरोजगार हैं और काम चाहते हैं। मेरे पूछने पर उन्होंने कहा कि वे सिर्फ ढोल बजाना जानते हैं। सवाल यह है कि जो समुदाय पहले से कौशल सम्पन्न है उसे बेरोजगार क्यों रहना चाहिए? अब हमारी बारी है कि हम ऐसे अवसर पैदा करें कि यही कला कौशल एक आर्थिक गतिविधि बन जाये। आज डिंडोरी के गुदुम बाजा कलाकार मुरारी लाल भारवे और शिवप्रसाद धुर्वे को उनकी मंडली के साथ आदर से बुलाया जाता है। करीब 250 आदिवासी कलाकारों ने राजपथ पर गुदुम बाजा बजाकर सबको हैरत में डाल दिया था। व्यवसाय को हिकारत की निगाह से देखना कुछ लोगों की फितरत होती है। समाज की व्यापक सोच इससे अलग है। वह हर व्यक्ति के लिए संभावनाओं की तलाश करता है। उन्हें अवसर देता है और उन वंचितों की आशाओं को नया आकाश दे देता है जिनके पास उम्मीद के नाम पर कुछ नहीं होता। 

क्या कोई सोच सकता है कि उस्ताद अलाउद्दीन खान साहब ने 1918 में जब मैहर बैंड की शुरुआत अकाल में अनाथ हुए बच्चों की जीविका के लिए की थी। आज भी मैहर बैंड हमारे बीच है। इसके कलाकारों को नमन करते हंै। इस बैंड की ख्याति पूरे विश्व में फैली है। कला और संस्कृति को आर्थिक गतिविधियों से जोड़कर ही उन्हें जीवंत बनाया जा सकता है। इसमें कोई शक नही है कि बैंड एक प्रकार से सूक्ष्म आर्थिक गतिविधि है जो एक टीम को रोजगार का साधन बनाता है। साथ ही कला को जीवंत भी रखता है। कला गर्व करने की चीज है। ऐसा मैं सोचता हूँ। जबलपुर के श्याम बैंड की लोकप्रियता सबको पता है। पिछले एक दशक में नार्थ ईस्ट में कई बैंड उभरकर सामने आए हैं। वे अपनी परंपरागत लोक धुनों को वेस्टर्न संगीत के साथ मिलाकर अपनी प्रस्तुतियां देते हैं। देशभर में उनका नाम है।

नागालैंड की चार बहनों का बैंड आज पूरे भारत में लोकप्रिय है। इंडियन ओशियन बैंड सब जानते हंै। निर्वाचन आयोग के लिए भी इसने प्रचार किया है। अरुणाचल प्रदेश की बेटियों का विनाइल रिकार्ड्स बैंड भी एक प्रसिद्द बैंड है। पूना के सुलेखा बैंड की खुद की वेबसाइट है जो उत्सव और अवसर के अनुसार प्रस्तुतियां तैयार करता है।

मुझसे कई लोक कलाकार मिलते रहते हैं जो विलुप्त होती हमारी संगीत परम्पराओं के प्रति चिंतित हैं। हमें उनका संरक्षण करना होगा। नए ढंग से उन्हें आर्थिक गतिविधियों से जोड़ना होगा। हमारे बहुत सारे लोक कलाकार जो परंपरागत वाद्य बजाते रहे हैं, जैसे ढोलक, मंजीरा, टिमकी, रमतूला, शहनाई आदि वे कहाँ जाएँ? वे आर्थिक संसार से कट रहे हैं। उन्हें बचाना जरुरी है। उन्हें आर्थिक गतिविधियों से जोड़ना सबसे ज्यादा जरुरी है। 
आज बैंड का चलन है शादी विवाह, महोत्सवों में लोग बैंड बुलाते हैं। इसीलिए इन लोक कलाकारों को कौशल विकास के माध्यम से संगठित कर बैंड के रूप में प्रस्तुत कर आर्थिक गतिविधियों से जोड़ने की पहल करना होगी। गरीब कलाकारों के घरों और परिस्थितियों का ध्यान रखना होगा। उनके घरों को भी रौशनी मिलनी चाहिए। बैंड बाजा प्रशिक्षण की यही सोच है। इसे एक सूक्ष्म और लघु आर्थिक गतिविधि के रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश होगी। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !