बैकों के बदले हालात और कृषि ऋण | EDITORIAL by Rakesh Dubey

साल में दो बार आने वाली  रिजर्व बैंक आफ इण्डिया की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट बैंकिंग तंत्र की सेहत के बारे में जानकारी देती है। ताजा रिपोर्ट, बैंकिंग जगत के दिग्गजों और बैंक शेयरों में निवेश करने वालों के लिए सुखद खबर लेकर आई है। सरकारी बैंकों में फंसी हुई परिसंपत्तियों से निजात मिली है और सुधार की प्रक्रिया नजर आ रही है। यह सब सरकार द्वारा बैंको में डाली गई राशि का नतीजा है।

देश के बैंकिंग उद्योग में सितंबर में फंसा हुआ कर्ज 10.8 प्रतिशत के स्तर पर था, अर्थात मार्च 2018 के 11.5 प्रतिशत के स्तर से कम। आरबीआई को उम्मीद है कि मार्च 2019 तक यह घटकर 10.3 प्रतिशत रह जाएगा। इससे संकेत मिलता है कि देश का बैंकिंग तंत्र सुधार की राह पर है। बैंक अपनी फंसी परिसंपत्तियों के लिए अधिक राशि का प्रावधान कर रहे हैं। इससे उनका प्रॉविजनिंग कवरेज अनुपात सुधर रहा है। वर्ष के आगे बढऩे के साथ-साथ इसमें और गति आएगी और यह वर्ष बैंकिंग बैंकिग क्षेत्र के लिए अच्चा साबित हो सकता है। अब बैंकों को भविष्य में फंसी परिसंपत्तियों के लिए उतनी राशि का प्रावधान नहीं करना होगा जितना वे अतीत में कर रहे थे। इन बातों का असर मुनाफे पर भी होगा और उसमें सुधार आएगा।

सितंबर २०१८ में २१ सरकारी बैंकों में से १२ घाटे में थे। दिसंबर २०१५ में जब आरबीआई द्वारा परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के बाद बैंकिंग तंत्र में फंसा हुआ कर्ज बढऩे लगा तो सरकारी बैंकों ने १.८४ लाख करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया। अब बॉन्ड प्रतिफल में आई गिरावट भी बैंकों का मुनाफा बढ़ाने में मदद करेगी। सितंबर २०१८ तक बॉन्ड प्रतिफल बढ़ता रहा और १० वर्ष का प्रतिफल बढ़कर ८.२३ प्रतिशत तक पहुंच गया था। इससे सभी बैंकों को नुकसान हुआ। आरबीआई ने उन्हें भारी-भरकम मार्क टु मार्केट (एमटीएम) नुकसान को क्रमबद्घ करने की इजाजत दी। पहले मार्च और उसके बाद जून २०१८ में ऐसा किया गया। एमटीएम से तात्पर्य परिसंपत्ति मूल्यांकन की लेख व्यवस्था से है। अपने एमटीएम नुकसान को क्रमबद्घ करने के बजाय बैंको ने नुकसान सहना तय किया। कृषि ऋण, कृषि संकट, कृषि कर्ज माफी समेत किसानों के लिए चाहे जिस तरह राहत प्रदान की जाए, बैंक उनको कर्ज देने से बचेंगे और वास्तविक मुद्दों पर चर्चा तो होगी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकलेगा। यही कारण है कि सरकारी बैंकों के लिए मुनाफे की वापसी इस वर्ष भी चर्चा का विषय रहेगी। 

किसानों के संकट का मामला भी इस वर्ष सुर्खियों में रहेगा। तीन राज्यों में कृषि ऋण माफी के राजनीतिक स्टंट के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समस्या से बुनियादी तौर पर निपटने का निर्णय किया है। स्वरूप भले बदलजाए लेकिन प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद हमारे देश की हकीकत है। राहत पैकेज चाहे जिस स्वरूप में आए लेकिन बैंक किसानों को नया ऋण देने से बचेंगे। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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