मध्यप्रदेश: इस बार कैसी सरकार ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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भोपाल। मध्यप्रदेश में बड़ी उलझन हो गई है | मतदाता ने जो जनादेश दिया है, उसने शिवराज उसके मंत्रियों के साथ कांग्रेस के दिग्गजों को भी जमीन दिखा दी है | इस  अस्पष्ट जनादेश के बावजूद भाजपा और कांग्रेस सरकार बनाने के दावे कर रही है | ११ दिसम्बर की सुबह  ८ बजे से जारी मतगणना १२ दिसम्बर को सुबह चार बजे तक यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकी है, अगली सरकार किसकी कैसे और क्यों ? सुबह ४ बजे तक २३०  सीटों में से २२०  सीटों के परिणाम घोषित किये गये। इसमें कांग्रेस ११४ और बीजेपी १०९   सीटों पर विजयी रही। वहीं बीएसपी २  सीटों पर विजयी हो रही हैं। अभी एक सीट का परिणाम घोषित होना है। समाजवादी पार्टी ने एक सीट पर तथा ४ निर्दलीय विजयी हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने राज्यपाल को चिठ्ठी लिख कर सरकार बनाने का दावा किया है तो भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष राकेश सिंह ने भी सरकार बनाने का दावा करने के संकेत दिया हैं। राकेश सिंह ने ट्वीट कर कहा है कि निर्दलीय उनके संपर्क में हैं। सिंह ने  यह भी कहा है कि कांग्रेस के पास जनादेश नहीं है। सही मायने में जनता ने “इस बार दो सौ पार” की हवा निकाल दी है और १४० सीटों के बदलाव के आंकड़े को भी पंचर कर दिया है | इस बार  विचित्र सरकार !

भाजपा के हारने वाले मंत्रियों में भोपाल दक्षिण-पश्चिम से उमाशंकर गुप्ता, बुरहानपुर से अर्चना चिटनीस, ग्वालियर से जयभान सिंह पवैया, मुरैना से भाजपा के रुस्तम सिंह और बड़ा मलहरा सीट से ललिता यादव चुनाव हार गईं हैं। खरगोन की सेंधवा सीट से अंतरसिंह आर्य कांग्रेस के ग्यारसीलाल रावत से चुनाव हार चुके हैं। वहीं, कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपनी परंपरागत सीट चुरहट से ६४०२ वोटों से हार गए हैं। । देवास की हाटपीपल्या सीट से भाजपा के मंत्री दीपक जोशी को कांग्रेस के मनोज सिंह चौधरी १३५१९  वोटों से हराया। 

भाजपा को ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो कांग्रेस को विन्ध्य और बुन्देलखण्ड में । भाजपा ने सीटें गंवाईं।] इनमें से अधिकतर कांग्रेस के पास गई हैं। विन्ध्य में इसका उलट  रहा । एससी-एसटी और सवर्ण आंदोलन के अलावा किसान आंदोलन का भी बड़ा असर रहा। इसके अलावा एंटी इन्कम्बेंसी फैक्टर ने भी भाजपा का नुकसान किया।राज्य में पिछले १३  साल से शिवराज सिंह चौहान सत्ता में हैं। उन्होंने दावा किया था कि वे सबसे बड़े सर्वेयर हैं और वे जानते हैं कि भाजपा ही जीतेगी।  सारे मंसूबे धरे के धरे रह गए |

अब दोनों प्रमुख दल निर्दलीय और उन दलों के आसरे पर हैं, जिनसे ये  बड़े दल चुनाव के पूर्व बात करना पसंद नहीं करतेथे |इन्हें “वोट कटवा” जैसी संज्ञा से नवाजते थे | भाजपा के मंत्री अपने अहं के कारण हारे हैं तो कांग्रेस के लोग फील गुड के सहारे थे | नतीजा सामने है | मतदाता परिपक्व हो गया है, उसका अगला कदम चुने प्रतिनिधि को वापिस बुलाने का भी  हो सकता है |

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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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