MP सरकार सरस्वती पूजन करती है लेकिन MUSIC की शिक्षा बंद कर रही है | EDUCATION

भोपाल। प्रदेश के सरकारी स्कूलों से संगीत की शिक्षा गायब हो रही है। संगीत का कोर्स हायर सेकंडरी के कला संकाय में रेगुलर कोर्स में शामिल है। इसके बावजूद स्कूलों में संगीत शिक्षा न के बराबर है। प्रदेश में लगभग 9 हजार हाई व हायर सेकंडरी स्कूल हैं, लेकिन संगीत शिक्षकों की संख्या महज 25 है। वहीं जिले में 131 स्कूलों में से सिर्फ 5 स्कूलों में संगीत शिक्षक पदस्थ हैं। ऐसे में स्कूलों में संगीत की शिक्षा सिर्फ सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक सीमित रह गई है। 

स्कूलों में संगीत शिक्षक के साथ-साथ संसाधनों की भी कमी है। संगीत के कोर्स के लिए स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से बजट का भी कोई प्रावधान नहीं है। संगीत के लिए आवश्यक वाद्य-यंत्रों को स्कूल अपने विकास निधि से खरीदता है। जिन स्कूलों में संगीत के शिक्षक थे, उनकी सेवानिवृत्ति के बाद से पद खाली पड़े हैं। वहीं, स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से सीबीएसई स्कूलों की तर्ज पर सरकारी स्कूलों में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) को अनिवार्य किया गया है। इसके तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। लेकिन स्कूलों में संगीत शिक्षकों की कमी होने से प्राचार्यों को सीसीई कराना मुश्किल हो रहा है।

उत्कृष्ट विद्यालय में कोर्स बंद

राजधानी के शासकीय सुभाष उत्कृष्ट विद्यालय में संगीत का कोर्स बंद हो गया है। कई सालों से स्कूल में संगीत शिक्षक का पद स्वीकृत होने के बावजूद भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं की गई है। जिससे संगीत के कोर्स को बंद करना पड़ा। वहीं जहांगीराबाद शासकीय कन्या हायर सेकंडरी स्कूल में भी संगीत का कोर्स बंद होने की कगार पर है।

24 साल पहले हुई थी संगीत शिक्षकों की नियुक्ति

प्रदेश में 1994 में शिक्षकों की नियुक्ति निकाली गई थी। जिसमें संगीत शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी। इसके बाद से कभी भी संगीत शिक्षक का पद नहीं निकाला गया। वहीं अभी 2018 में शिक्षकों की भर्ती में भी संगीत शिक्षक का पद नहीं है।

संगीत शिक्षकों को नहीं मिलता प्रमोशन

शिक्षकों ने बताया कि संगीत शिक्षकों को वर्ग-3 की श्रेणी में रखा गया है। अन्य विषयों के शिक्षकों को व्याख्याता के पद पर रखा जाता है, जबकि संगीत शिक्षक का प्रमोशन भी नहीं होता है।

छात्राओं की रुचि संगीत में ज्यादा

कई स्कूलों में छात्राओं की रुचि संगीत में होने के कारण इसे विषय के रूप में लेना चाहती हैं, लेकिन स्कूल में न तो शिक्षक हैं न ही संसाधन उपलब्ध हैं। ऐसे में छात्राओं की संख्या कम होती जा रही है। 

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