हार्ट अटैक: स्टेंट डालने से 325 मर गए, MDAE का कुल आंकड़ा 556 हो गया | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। भारत में मौत को 'भगवान की मर्जी' मानकर स्वीकार किया जाता है। हत्या और हादसों के मामलों में पोस्टमार्टम हो भी जाता है परंतु बीमारी से मौत के बाद किसी तरह की जांच नहीं होती। परिजन डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लगाते हैं और डॉक्टर अंग्रेजी में विज्ञान के कुछ शब्द लिखकर यह बता देते हैं कि यदि इलाज ना करते तो पहले ही मर जाता। फिर भी थोड़े बहुत मामले सामने आ जाते हैं। मेडिकल डिवाइस एडवर्स इवेंट रिपोर्ट में बताया गया है कि हार्टअटैक के 325 मरीजों की मौत इसलिए हो गई क्योंकि उनकी जान बचाने के नाम पर डॉक्टरों ने घटिया क्वालिटी का स्टेंट डाल दिया गया था। इसी तरह के अन्य मेडीकल उपकरणों के कारण कुल 556 मरीजों की मौत हो चुकी है। 

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने मेडिकल डिवाइस एडवर्स इवेंट (एमडीएई) की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि पहले साल(2014) में जहां 40 मामले दर्ज किए गए थे। वहीं इस साल यह संख्या 556 हो गए हैं। जिनमें अकेले स्टेंट इम्पलांट के बाद दर्जन भर मौतें हुई हैं। अखबार के मुताबिक दवा निर्माता कंपनी-डॉक्टर और अस्पताल की मिलीभगत से खराब गुणवत्ता के उपकरण का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। 

यह रिपोर्ट के सार्वजनिक होने पर निर्माताओं को स्टॉक वापस लेना पड़ सकता है। अकेले कैथेटर का स्टॉक लाखों में है। रिपोर्ट देखने से पता चलता है कि कार्डिक स्टेंट के मामले में एक ही बैच के डिवाइस से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। मेडिकल उपकरणों की सुरक्षा संबंधी रिपोर्ट बनाने की जिम्मेवारी इंडियन फार्माकोपिया कमीशन (आईपीसी) के अधीन काम करने वाले देशभर के 13 एमईएमसी (एडवर्स इवेंट मॉनिटरिंग सेंटर) के जिम्मे है। आईपीसी स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन काम करता है। इसका काम दवाओं का मानक तय करना है।

साल 2014 के बाद से अबतक मेडिकल उपकरण संबंधित 903 शिकायतें दर्ज हुई हैं। जिनमें 325 कार्डिक स्टेंट, 145 ऑर्थोपेडिक इंप्लांट, 83 आईयूसीसीएस (इंट्रायूटेरिन कंट्रासेप्टिव डिवाइसेज), 58 इंट्रावेनस कैनूल्स, 21 कैथेटर के साथ 271 अन्य मेडिकल डिवाइस संबंधित शिकायतें दर्ज की गई हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में दवा उत्पादक कंपनी एबोट के मामले में 556 में 290 गंभीर परिणाम देखने को मिले। कुक मेडिकल के 18 और टेरुमो यूरोप के डिवाइस की वजह से 14 मरीजों की जान खतरे में पड़ी। आर्थोपेडिक मामले में जॉनसन एण्ड जॉनसन के खिलाफ 19 शिकायतें मिलीं। यूआईडी के क्षेत्र में बेयर एजी के खिलाफ 36 गंभीर परिणाम दर्ज हुए हैं।

साल 2018 में ज्यादातर शिकायतें नागपुर, जयपुर, रोहतक, कोटा, देहरादून, पंचकुला, कोच्ची और गोहाना जैसे शहरों से मिली हैं। वहीं दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर जहां सबसे अधिक मरीज आते हैं इक्का-दुक्का शिकायतें मिली हैं। दिल्ली के एम्स से एक भी शिकायत नहीं मिली हैं।

3 में से 1 मौत उपकरणों के कारण
कुछ मामलों को छोड़कर मौत की वजहों में साफ तौर पर कहा गया है कि पिछली बीमारी से मौत नहीं हुई है। और न ही इलाज में लापरवाही मौत की वजह है। एमडीएई ने एक तिहाई गंभीर परिणामों के लिए ‘अन्य उपकरण’ को जिम्मेदार ठहराया है। जिनमें दास्ताने, ड्रेसिंग, एडेसिव प्लास्टर, डायपर, कैची जैसे ‘मेडिकल डिवाइस’ शामिल हैं।

ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आते
सेन्ट्रल ड्रग स्टैण्डर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन(सीडीएससीओ) के प्रमुख डॉक्टर ईश्वरा रेड्डी ने आईपीसी से मेडिकल डिवाइस से किसी तरह के गंभीर परिणाम के पैटर्न का पता चलने से इनकार किया है। उन्होंने कहा, ” हम नहीं चाहते कि लोगों में किसी तरह का भय पैदा हो। आईपीसी के पीएसओ ने कहा कि वह सीडीएससीओ को हर महीने अपनी रिपोर्ट भेजते हैं इसे सार्वजनिक करने का अधिकार उनके पास है। बड़े अस्पताल को भी मेडिकल डिवाइस संबंधित रिपोर्ट के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। इसलिए सभी मामले दर्ज नहीं हो पाते हैं।

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