RBI की लड़ाई जारी, मोदी सरकार और BANK स्टाफ आमने-सामने

नई दिल्ली। रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तकरार ज्यादा बढ़ गई है। ऐसी खबरें हैं कि रिजर्व बैंक गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं। ईटी नाउ के मुताबिक अगर सरकार रिजर्व बैंक का सेक्शन 7 लागू करती है तो उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं। रिजर्व बैंक के सेक्शन 7 के तहत सरकार को ये अधिकार है कि वो आरबीआई के गवर्नर को गंभीर और जनता के हित के मुद्दों पर काम करने के लिए निर्देश दे सकती है। ये सेक्शन स्वतंत्रता के बाद अब तक उपयोग में नहीं किया गया है। 

ईटी के मुताबिक सरकार ने हाल के हफ्तों में रिजर्व बैंक को पत्र भेजे हैं। ये पत्र सेक्शन 7 के अधिकार के तहत भेजे गए हैं। इसमें NBFC के लिए नकदी, कमजोर बैंकों के लिए पूंजी और एसएमई को लोन जैसे मुद्दे शामिल हैं। सेक्शन 7 में कहा गया है कि  'सरकार रिजर्व बैंक के गवर्नर से बातचीत करने के बाद समय-समय पर जनता के हित में रिजर्व बैंक को आदेश दे सकती है।'

इस मुद्दे पर रिजर्व बैंक की तरफ से कोई बयान नहीं आया है। अभी ये साफ नहीं हो पाया है कि ये सेक्शन कैसे काम करता है क्योंकि इसका अभी तक उपयोग नहीं हुआ है। इससे रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर सवाल उठते हैं। रिजर्व बैंक का देश में महंगाई को नियंत्रित करने और बैंक नोट को जारी करने का प्रमुख काम है। रिजर्व बैंक एक स्वतंत्र संस्था के तौर पर काम करता है। इसमें सरकार की दखलअंदाजी नहीं करती है। हालांकि कभी-कभी रिजर्व बैंक और सरकार के रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं।

सरकार को जनता चुनती है इसलिए वो इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। इसलिए महंगाई बढ़ने और ब्याज दरें बढ़ने पर सरकार रिजर्व बैंक को इन्हें घटाने के संकेत देती है ताकि जनता को दिक्कत न हो। सरकार कभी सीधे रिजर्व बैंक को निर्देश नहीं देती है।

ऐसी जानकारी है कि उर्जित पटेल ने अपना पक्ष सरकार के सामने रख दिया है। ईटी नाउ के मुताबिक उर्जित पटेल ने सरकार से कह दिया है कि वो आरबीआई के रिजर्व पर पर रेड न करे। सरकार चाहती है कि अगर पटेल इस्तीफा देते हैं तो अगला गवर्नर कोई ब्यूरोक्रेट हो। ईटी नाउ के मुताबिक सरकार को लगता है कि इकोनॉमिस्ट के तौर पर रिजर्व बैंक का गवर्नर भारत के लिए ठीक से काम नहीं कर सकता है।

सरकार ने अब तक आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 को लागू नहीं किया है। पिछले कुछ समय से सरकार और रिजर्व बैंक के बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल वी आचार्य ने शुक्रवार को कहा था कि केंद्रीय बैंक की आजादी की उपेक्षा करना ‘बड़ा घातक’ हो सकता है। 

इसके बाद रिजर्व बैंक और सरकार के बीच चल रहा मतभेद सामने आ गया। इसके बाद कल वित्तमंत्री अरुण जेटली ने रिजर्व बैंक की तीखी आलोचना की थी। जेटली ने कहा था कि शीर्ष बैंक 2008 से 2014 के बीच अंधाधुंध कर्ज देने वाले बैंकों पर अंकुश लगाने में नाकाम रहा।

उन्होंने कहा कि बैंकों में फंसे कर्ज (एनपीए) की मौजूदा समस्या का यही कारण है।जेटली ने ‘इंडिया लीडरशिप समिट’ में कहा, ‘वैश्विक आर्थिक संकट के बाद आप देखें 2008 से 2014 के बीच अर्थव्यवस्था को कृत्रिम रूप से आगे बढ़ाने के लिये बैंकों को अपना दरवाजा खोलने तथा अंधाधुंध तरीके से कर्ज देने को कहा गया।’

उन्होंने कहा, ‘एक तरफ अंधाधुंध कर्ज बांटे जा रहे थे, दूसरी केंद्रीय बैंक कहीं और देख रहा था...मुझे अचंभा होता है कि उस समय सरकार एक तरफ देख रही थी, और रिजर्व बैंक की नजर दूसरी तरफ देख रहा था। मुझे नहीं पता कि केंद्रीय बैंक क्या कर रहा था जबकि वह इन सब बातों का नियामक था। वे सच्चाई पर पर्दा डालते रहे।’

इससे पहले भी रिजर्व बैंक के गवर्नर और सरकार के बीच मतभेद हुए हैं। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई वी रेड्डी ने अपनी आत्मकथा में लिखा था कि तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम के साथ उनकी तकरार इतनी बढ़ गई थी कि वो बीच में ही इस्तीफा देने का मन बना चुके थे। इससे पहले रघुराम राजन और मौजूदा सरकार में भी मतभेद हुए थे।
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