इतिहास में महत्वपूर्ण है आज का दिन: कश्मीर का भारत में विलय हुआ था

15 अगस्त 1947 को जब ब्रिटिश राज का अंत हुआ, ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों की काफ़ी कोशिशों के बावजूद, कश्मीर के महाराजा हरि सिंह किसी फ़ैसले पर नहीं पंहुच सके थे। आने वाले हफ़्तों में इसके संकेत मिले थे कि महाराजा भारत में विलय की तैयारी कर रहे थे। पाकिस्तान से आने वाले क़बायली लड़ाकों के आक्रमण करने पर उन्होंने विलय का फ़ैसला कर लिया। पाकिस्तान की नई सरकार और सेना के एक हिस्से ने इन लड़ाकों का समर्थन किया था और उन्हें हथियार मुहैया कराए।

जब क़बायलियों की फ़ौज श्रीनगर की ओर बढ़ी, ग़ैर मुस्लिमों की हत्या और उनके साथ लूट पाट की ख़बरें आने लगीं, तब हरि सिंह 25 अक्टूबर को शहर छोड़ कर भाग गए। उनकी गाड़ियों का काफ़िला जम्मू के सुरक्षित महल पंहुच गया। उस समय के राजकुमार कर्ण सिंह याद करते हुए कहते हैं कि उनके पिता ने जम्मू पंहुच कर ऐलान कर दिया, हम कश्मीर हार गए।

उस थकाऊ यात्रा के पहले या अधिक मुमिकन है कि उसके बाद, महाराजा ने उस काग़ज़ पर दस्तख़ कर दिया, जिसने उनकी रियासत को भारत का हिस्सा बना दिया। आधिकारिक रूप से यह कहा जाता है कि भारत के गृह मंत्रालय के उस समय के सचिव वीपी मेनन 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू गए और विलय के काग़ज़ात पर महाराजा से दस्तख़त करवा लिया। 

पर अब यह मोटे तौर पर ग़लत माना जाता है। मेनन उस दिन हवाई जहाज़ से जम्मू जाना चाहते थे, पर वे जा नहीं सके थे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महाराजा ने दरअसल श्रीनगर छोड़ने से पहले ही काग़ज़ पर दस्तख़त कर दिया था। इस पर काफ़ी संदेह है। इस बात की काफ़ी संभावना है कि उन्होंने काग़ज़ पर दस्तख़त 27 अक्टूबर को किया होगा। जो तारीख बताई जाती है, उन्होंने उसके एक दिन बाद दस्तख़त किया होगा, पर एक दिन पहले की तारीख़ डालने के लिए राजी हो गए होंगे।

यह महत्वपूर्ण क्यों है? 27 अक्टूबर के तड़के पहली बार भारतीय सेना कश्मीर की ओर बढ़ी और उसे हवाई जहाज़ से श्रीनगर की हवाई पट्टी पर उतारा गया। इसकी पूरी संभावना है कि यह दुस्साहसिक सैनिक अभियान महाराजा के संधि पर दस्तख़त करने के कुछ घंटे पहले ही शुरू कर दिया गया था। भारत आधिकारिक रूप से कहता है कि यह अभियान दस्तख़त करने के बाद शुरू हुआ था। पर ऐसा नहीं है।
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