सरकारी DOCTOR ने मरीज को प्राइवेट HOSPITAL में रेफर किया तो सस्पेंड किए जाएंगे | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। सरकारी अस्पताल मरीजों की स्कैनिंग और रेफरिंग सेंटर बनकर रह गए हैं। कड़वा सच यही है कि आने वाली भीड़ में से सरकारी डॉक्टर स्कैनिंग करते हैं और फिर खर्चा करने की क्षमता रखने वाले मरीज को प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है लेकिन अब मेडिकल कॉलेज से संबंधित अस्पताल की ओपीडी और आईपीडी में आने वाले मरीजों का इलाज डॉक्टर्स को सरकारी अस्पताल में ही करना होगा। 

तय किया गया है कि अब दोपहर दो बजे के बाद ही डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकेंगे।इसके लिए भी उन्हें मेडिकल कॉलेज के डीन से लिखित अनुमति लेनी होगी। बगैर अनुमति यदि कोई डॉक्टर निजी अस्पताल में इलाज करते मिला तो वेतन वृद्धि रोकने से लेकर सस्पेंड करने तक की कार्रवाई की जाएगी। डॉक्टर्स पर निगरानी की जिम्मेदारी डीन को दी गई है।

इससे पहले चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगाने की तैयारी की थी। डॉक्टर्स के दबाव में शुक्रवार को संशोधित आदेश जारी कर दिए गए। ज्ञात हो कि गांधी मेडिकल कॉलेज के करीब 100 डॉक्टर्स ऐसे हैं, जो रोजाना निजी अस्पतालों में मरीज देखने और ऑपरेशन करने जाते हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं, जो 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपए तक महीना कमाते हैं।

पुराने स्टे पर बदल दिया आदेश
बीती 31 अगस्त को एसीएस ने सभी डीन को प्राइवेट प्रैक्टिस पर सख्ती बरतने के निर्देश दिए थे। इसके तहत प्राइवेट अस्पताल में मरीज का इलाज करने जाने वाले सरकारी डॉक्टर पर हर महीने दो हजार रुपए स्वशासी समिति के खाते में जमा कराने के निर्देश थे।

प्राइवेट अस्पताल में सर्जरी करने वाले डॉक्टर पर 500 रुपए और एक हजार रुपए संबंधित नर्सिंग होम को जमा कराने पड़ते। प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर्स की विजिट पर 50 रुपए प्रति विजिट स्वशासी समिति के खाते में जमा करवाए जाते। इस सख्ती से बचने के लिए मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन ने इंदौर हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2007 में दिए गए स्टे की कॉपी निकाल ली। इसे सभी मेडिकल कॉलेज के डीन के सामने पेश कर दिया। इसके बाद सभी मेडिकल कॉलेज के डीन ने बदले हुए आदेश जारी कर दिए हैं। 

आदेश का उल्लंघन किया तो सरकार के साथ धोखा
नई व्यवस्था को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर मुख्यसचिव राधेश्याम जुलानिया का तर्क है कि मेडिकल कॉलेज के इंफ्रास्ट्रक्चर और डॉक्टर्स की सैलरी पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। ऐसा मरीजों की सुविधा के लिए किया जा रहा है।

ऐसे में डॉक्टर्स यदि सरकारी अस्पताल छोड़कर प्राइवेट अस्पताल में मरीज का इलाज करते हैं तो इसे सरकार के साथ धोखा माना जाएगा। अब तक अस्पताल में शाम को राउंड न लगाने, सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक ओपीडी में न मिलने, देर से आकर जल्दी चले जाने, ड्यूटी समय में प्राइवेट अस्पताल में प्रैक्टिस करने की शिकायतें मिल रही थीं। कुछ डॉक्टर्स को तो अस्पताल में ढूंढना भी मुश्किल हो जाता है। मरीज को सरकारी अस्पतालों में ही बेहतर इलाज मिले, इसलिए यह सख्ती की जा रही है। 

पहले भी प्रैक्टिस पर लग चुकी रोक
1994 में सरकार ने निजी प्रैक्टिस पर पाबंदी लगाई थी। मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन इंदौर ने 1997 में हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। सचिव डॉ. राकेश मालवीय ने बताया कि 1999 में सरकार ने चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉक्टर्स को प्रैक्टिस की छूट दी। स्वास्थ्य विभाग ने भी प्रैक्टिस से पाबंदी हटाई, लेकिन शर्त रखी कि डॉक्टर्स को 1000 और मेडिकल ऑफिसर्स को 500 रुपए सालाना जमा कराने होंगे। 
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