BJP: टिकट बांटने नहीं काटने के काम आती है रायशुमारी | MP NEWS

ग्वालियर। भाजपा ने हाल ही में पूरे प्रदेश में रायशुमारी कराई है। कहा गया है कि इसी आधार पर टिकट वितरण किया जाएगा परंतु पार्टी सूत्र और पुराने प्रसंग यह बता रहे हैं कि रायशुमारी पार्टी में टिकट बांटने नहीं बल्कि काटने के काम में ली जाती है। इस तरीके से पार्टी में बागवत की संभावना को रोक दिया जाता है और कार्यकर्ता को भाजपा में लोकतंत्र का अहसास होता है। जबकि टिकट वितरण ठीक वैसे ही होता है जैसे कांग्रेस में होता है। फर्क बस इतना है कि भाजपा में सिर्फ 3 दिग्गज नहीं हैं। इनकी संख्या थोड़ी ज्यादा है। 

भारतीय जनता पार्टी ने 15 व 16 अक्टूबर को प्रदेशभर में विधानसभा टिकट वितरण के लिए पार्टी के दायित्ववान कार्यकर्ताओं की रायशुमारी कराई। चुने गए कार्यकर्ताओं को एक स्थान पर बुलाकर चुनाव की तरह उनसे मतदान कराया। हर एक को मतपत्र दिया गया। कहा गया कि वह अपने नाम के अलावा कोई भी तीन नाम क्रमशः लिखकर बताएं कि उसकी विधानसभा से विधायक का टिकट किसे दिया जाए? सूची में शामिल नए कार्यकर्ताओं को इस बात पर गर्व हुआ कि उनसे पूछकर पार्टी विधानसभा के लिए प्रत्याशी तय करने वाली है। उधर विधायक बनने का सपना पाले बैठे दावेदारों ने दायित्ववान कार्यकर्ताओं से अपने पक्ष में वोटिंग की गुहार लगाई। सब कुछ ऐसे हुआ, मानो इस रायशुमारी में जो बाजी मारेगा, पार्टी उसे ही टिकट दे देगी। कुछ ने तो हाथ-पांव जोड़कर अपने पक्ष में दो-चार पर्चियां लिखवाने में सफलता भी हासिल कर ली। सोचा रायशुमारी में उनका नाम शामिल होने से पार्टी अभी नहीं तो बाद में विचार करेगी।

पार्टी की रणनीति
पार्टी से जुड़े जानकारों के अनुसार इस तरह की रायशुमारी के कोई विशेष मायने नहीं हैं। वास्तव में रायशुमारी सोची-समझी रणनीतिक व्यवस्था है। इसका उपयोग पार्टी दो स्तरों पर करती है। पहला टिकट काटने में, दूसरा कार्यकर्ताओं को पार्टी में लोकतंत्र का झांसा देने में। मसलन यदि पार्टी किसी प्रत्याशी का टिकट काटना चाहती है और रायशुमारी उसके खिलाफ है। ऐसे में जब टिकट कटने पर नाराज प्रत्याशी पार्टी मुख्यालय भोपाल पहुंचेगा तो उसके सामने रायशुमारी का रिपोर्ट कार्ड रख दिया जाएगा। इसके उलट यदि रायशुमारी प्रत्याशी के पक्ष में गई और फिर भी टिकट कट गया, तो उसे पार्टी के चार अन्य तरह के सर्वे की रिपोर्ट दिखा दी जाएगी। चूंकि रिपोर्ट गोपनीय रहती है इस कारण परिणाम विपरीत रहने पर भी दायित्ववान कार्यकर्ताओं में असंतोष नहीं उपजता। उन्हें लगता है कि उन्होंने जिसे चुना, अन्य ने उसके खिलाफ वोटिंग कर दी होगी।

यह हुआ पिछली रायशुमारी का हश्र
पिछले लोकसभा चुनाव में भिंड-दतिया सीट पर कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद डॉ. भागीरथ प्रसाद भाजपा में आ गए थे। रायशुमारी में उनका नाम ही नहीं था। विधानसभा चुनाव में मेहगांव से एन वक्त पर मुकेश चौधरी को टिकट दे दिया गया था। दोनों ही मामलों में रायशुमारी एक तरफ धरी रह गई थी। ग्वालियर निगम चुनावों के बाद सभापति के लिए रायशुमारी में सतीश सिंह सिकरवार टॉप पर थे, पार्टी ने राकेश माहौर को सभापति बनवा दिया था। पिछले ही विधानसभा चुनावों में ग्वालियर पूर्व सीट से रायशुमारी में विवेक नारायण शेजवलकर का नाम आगे था, टिकट श्रीमती माया सिंह को दे दिया गया था।
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