असंवैधानिक धारा 497 और ये पक्ष भी | EDITORIAL by Rakesh Dubey

देश में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द की गई भारतीय दंड विधान संहिता धारा 497 के फैसले पर लेकर बहस जारी है। सवाल यह है कि क्या धारा 497 की असंवैधानिकता विवाह संस्था को चोट पहुंचाएगी और पुरुषों में उन्मुक्तता का भाव पनपेगा। सबसे पहले यह विचार जरूरी है कि क्या वाकई यह शंका उचित है? पहले धारा 497 की दो अहम बातों को समझना होगा। प्रथम यह कि अगर कोई विवाहित पुरुष, किसी विवाहिता से संबंध स्थापित करता था तो आपराधिक मामला सिर्फ पुरुष पर ही दर्ज होता था क्यों ? द्वतीय क्या अप्रत्यक्ष रूप से पति का अपनी पत्नी की देह पर अधिकार उचित था?

यह दोनों ही बातें प्रथमत: लैंगिक समानता के विरुद्ध थीं। कैसे कोई किसी की देह पर अपना मालिकाना हक जता सकता है, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री? दूसरा जब दो परिपक्व लोग सहमति से संबंध स्थापित करते हैं, तो स्त्री को निर्दोष और पुरुष को अपराधी क्यों माना जाए? ये वे प्रश्न थे जिनकी अवहेलना लगातार समाज द्वारा की जा रही थी। भारतीय समाज को इस फैसले को आमूलचूल परिवर्तन के रूप में देखना चाहिए। यह सोच कि इससे विवाह संस्था प्रभावित होगी गलत है। साथ ही यह भी तर्क उचित नहीं कि धारा 497 की असंवैधानिकता से एक पुरुष भयमुक्त होकर व्यभिचार करने से नहीं हिचकेगा?

यह भी हास्यास्पद-सा लगता है कि व्यक्ति चाहे स्त्री हो या पुरुष, विवाहेत्तर संबंध इसलिए स्थापित करते हैं कि वे चरित्रहीन हैं या उन्हें विवाह से इतर रिश्ते उन्मुक्त जीवन जीने का मार्ग दिखते हैं। व्यभिचार को किसी भी रूप में वैवाहिक संबंधों के लिए उचित नहीं ठहराया जा सकता। कम से कम भारतीय जीवन पद्धति में इसमें स्व अनुशासन नामक एक मजबूत कारक है। जो भटकने से रोकता है। विवाह की पहली प्रतिबद्धता विश्वास है। विश्वास खंडित होने पर विवाह संस्था स्वयं ही ढह जाती है। साथ ही  यह मानना कि व्यभिचार के कारण वैवाहिक संबंध टूटते हैं, तार्किक नहीं है। अदालत ने भी स्पष्ट किया है विवाहेतर सम्बन्धों की वजह से शादी खराब नहीं होती, बल्कि खराब शादी की वजह से विवाहेतर सम्बन्ध कायम होते है। इसे अपराध मान कर सजा देने का मतलब दुखी लोगों को और सजा देना होगा।

व्यभिचार, नैतिक कमजोरी है। अगर दंपती में से कोई यह पाता है कि उसका जीवनसाथी किसी और के साथ दैहिक रूप से जुड़ा हुआ है तो उसे छोडऩा उचित है। सिर्फ लोकलाज के नाम पर विवाह संबंधों को बनाए रखना, स्वयं को ही पीड़ा देता है। इसीलिए इस आधार पर संबंध विच्छेद की मांग को भी अदालत ने जायज ठहराया है। यह होना चाहिए पर इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि इससे भयादोहन से लेकर हिंसा और हत्या तक के मामलों से कैसे निजात मिले। भारत का समाज अपने एक अलग प्रकार के सामाजिक बन्धनों से बंधा है। इसमें स्व अनुशासन नामक एक मजबूत कारक मौजूद है जिसका परिणाम सामूहिक निंदा से लेकर बहिष्कार तक दिखते है। बेमेल विवाह, पारिवारिक अशांति, मजबूरी में चलते विवाह पर समाज को कुछ सोचना चाहिए समग्र विचार से ही समाज को दिशा मिलेगी।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !