MP NEWS: जमींदोज कर दी गई SATNA की शान

निरंजन शर्मा/सतना। सतना के प्रसिद्ध पन्नीलाल चौक का अनोखा घंटाघर कल पूर्वान्ह नगर निगम के कारिंदों ने गिरा। कह दिया कि यह सौ साल पुराना, कालातीत हो गया है, कहीं कोई दुर्घटना ना हो जाए इसलिए गिरा रहे हैं। चौराहे के इस घंटाघर के टूटे पड़े हिस्सों के नजदीक से कल शाम को गुजरा तो पता नहीं क्यों आँखें नम हो गईं और लगा कि जैसे इसके साथ मेरा भी कुछ टूट गया है ! रुआंसी धुन में एक गजल गुनगुनाते हुए घर लौटा-
अब कहाँ हूँ, कहाँ नहीं हूँ मैं..., जिस जगह हूँ, वहाँ नहीं हूँ मैं...!
कौन आवाज़ दे रहा है मुझे..., कोई कह दे, यहाँ नहीं हूँ मैं...!

गिराया गया ढांचा लगभग 32 वर्ष पुराना था और बहुत मजबूत बना था। यहाँ चौराहे में पहले एक कुआं था जिसे सन 1924 में सतना के तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी ने बनवाया था। वास्तव में इस चौराहे के आसपास सोहावल, नागौद, मैहर, रैगांव, सज्जनपुर, सिजहटा व कृपालपुर आदि के राजाओं और जागीरदारों द्वारा बनवाई गईं कई आलीशान इमारतें थीं, जिसमें से एक अभी कुछ दिन पूर्व ही गिराई गई है।

यह हिस्सा एक समय सतना की शान था और यहाँ अंग्रेज, उनकी मेमें तथा विभिन्न राजा-रजवाड़ों के परिवार खरीददारी करने आया करते थे। यहाँ कई दुकानें थीं पर सबसे ख़ास दुकान थी पन्नीलाल सौदागर की, जिसमें विदेशी कपड़ा, शराब, डिब्बाबंद गोश्त और मंहगी क्राकरी से लेकर हर प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधन मिलते थे। धीरे-धीरे यह चौराहा पन्नीलाल के नाम से मशहूर हो गया।

चौराहे का कुआं पहले तो आसपास के दुकानदारों और रहवासियों के पानी भरने के काम आता था मगर आज़ादी के बाद नगरपालिका के जमाने में चारों ओर जगत को छोड़ कर कुएं को पटियों से पाट दिया गया। बाद में यहाँ कुएं की जगह का इस्तेमाल कर घंटाघर बनाने की योजना बनी। बीच में एक ढांचा यहाँ काफी समय खड़ा रहा। सन 1982-83 की घटना है। शहर में एक सरकस आया, जिसके प्रचार के पोस्टर लगाने के लिए सरकस के कर्मचारी दो बाहरी नवजवान चौराहे में आये और कुआं के ढाँचे के ऊपर पोस्टर लगाते हुए उनमें से एक युवक कुएं में टपक कर मर गया।

तब नगरपालिका का ध्यान अधपटे कुआं और अधबने घंटाघर की समस्या पर गया और सन 84-85 में उस समय के नगरपालिका अधिकारी (कोई) हुसैन साहब ने यह घंटाघर बनवाया जो दूर से एक ताजिया जैसा लगता था। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह सुन्दर था और काफी समय से शहर के एक लैंडमार्क के रूप में जाना जाने लगा था। अभी हाल की बात है। रायपुर से यायावरी लेखक Lalit Sharma जी आये और मुझसे अपने शहर की कोई लैंडमार्क जगह दिखाने के लिए कहा तो मैं उनको यहीं पन्नीलाल चौक ले आया था। इस घंटाघर की वजह से यह चौराहा अच्छा लगता था।

कल इसका अनायास तोड़ा जाना रहस्यमय है और सत्ता या विपक्ष का कोई भी नेता इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोल रहा। नगर निगम के भृष्ट कर्मचारी और अधिकारी जो बोल रहे हैं उस पर किसी को विश्वास नहीं है। सबसे बड़ा झूठ तो यही कि यह ढांचा सौ साल पुराना था।

लोहिया, राजनाथ और ना जाने कितनी सभाओं का गवाह था
केवल 30-32 साल पुराना होने के बावजूद यह लोगों के दिलों में बैठ गया था और शहर की एक थाती के रूप में जाना जाता था। यहाँ दशहरे के दूसरे दिन “भरत-मिलाप” होता था। इसके चारों ओर अनगिनत सभाएं हुईं हैं और स्व. राममनोहर लोहिया व राजनाथ सिंह से लेकर लोकल नेता शंकरलाल तिवारी व गणेश सिंह तक ने यहाँ कई बार भाषण दिए हैं। अब पता नहीं क्यों; दोनों तो चुप हैं ही, अन्य स्थानीय नेता-नेतियों के मुंह में भी जैसे कुछ भरा है कि इस मसले पर कोई कुछ बोला नहीं और न ही वहां कोई झांकने आया।
श्री निरंजन शर्मा सतना के पत्रकार एवं साहित्यकार हैं। 
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