विधि आयोग का परामर्श पत्र और समान नागरिक संहिता | EDITORIAL by Rakesh Dubey

मालूम नहीं क्यों अपने कार्यकाल के अंतिम दिन परामर्श पत्र में कहा कि इस समय समान नागरिक संहिता की ‘न तो जरूरत है और ना ही वांछित’’। आयोग के इस  नजरिये के पीछे क्या दृष्टिकोण है इसका खुलासा अभी नहीं आया है। विधि आयोग ने विवाह, तलाक, गुजाराभत्ता से संबंधित कानूनों तथा महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव जरुर दिए हैं। समान नागरिक संहिता पर पूर्ण रिपोर्ट न देने कारण समय का अभाव हो सकता है शायद इसी कारण विधि आयोग ने परामर्श पत्र को प्राथमिकता दी होगी। आयोग द्वारा  परामर्श पत्र में कहा गया, ‘समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं। इसलिये दो वर्षों के दौरान किए गए विस्तृत शोध और तमाम परिचर्चाओं के बाद आयोग ने भारत में पारिवारिक कानून में सुधार को लेकर यह परामर्श पत्र प्रस्तुत किया है। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चौहान ने पूर्व में भी कह चुके हैं कि समान संहिता की अनुशंसा करने के बजाए, आयोग पर्सनल लॉ में ‘चरणबद्ध’ तरीके से बदलाव की अनुशंसा कर सकता है| वैसा भी नहीं किया गया है। इस परामर्श पत्र को उस दिशा का एक  मंथर कदम माना जा सकता है।

देश के 22 वें विधि आयोग पर निर्भर करेगा कि वह इस विवादित मुद्दे पर अंतिम रिपोर्ट लेकर आए। हाल में समान नागरिक संहिता के मुद्दे को लेकर काफी बहस हुई हैं और इसी के नतीजे विधि मंत्रालय ने 17 जून 2016 को आयोग से कहा था कि वह ‘समान नागरिक संहिता के मामले को देखे।

तलाक और सम्पत्ति कप लेकर आयोग ने महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि घर में महिला की भूमिका को पहचानने की जरूरत है और उसे तलाक के समय शादी के बाद अर्जित संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, चाहे उसका वित्तीय योगदान हो या नहीं हो। आयोग ने कहा कि सभी वैयक्तिक एवं धर्मनिरपेक्ष कानूनों में इसी के अनुसार संशोधन होना चाहिए। हालांकि, आयोग ने चेताया कि इसी के साथ, इस सिद्धांत का अर्थ संबंध खत्म होने पर संपत्ति का ‘पूरी तरह से’ अनिवार्य बराबर बंटवारा नहीं होना चाहिए क्योंकि कई मामलों में इस तरह का नियम किसी एक पक्ष पर ‘अनुचित बोझ’ डाल सकता है। आयोग ने ‘परिवार कानून में सुधार’ विषय पर अपने परामर्श पत्र में कहा,‘इसलिए, इन मामलों में अदालत को विवेकाधिकार देना महत्वपूर्ण है.’ इसके अलावा, आयोग ने सुझाव दिया कि महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र समान होनी चाहिए. आयोग ने कहा कि वयस्कों के बीच शादी की अलग अलग उम्र की व्यवस्था को खत्म किया जाना चाहिए। दरअसल, विभिन्न कानूनों के तहत, शादी के लिए महिलाओं और पुरुषों की शादी की कानूनी उम्र क्रमश: 18 वर्ष और 21 वर्ष है। आयोग ने कहा,‘अगर बालिग होने की सार्वभौमिक उम्र को मान्यता है जो सभी नागरिकों को अपनी सरकारें चुनने का अधिकार देती है तो निश्चित रूप से, उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने में सक्षम समझा जाना चाहिए।

इनमें से कई मुद्दे भारतीय समाज में इन दिनों दिख रही बंटवारे की लकीरों को पाट सकते है। समान नागरिक संहिता उनमे से एक 22 विधि आयोग इस मुद्दे पर जरुर सोचेगा। ऐसी उम्मीद रखना चाहिए, उम्मीद रखने में कोई हर्ज भी नहीं है।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !