motivational story in hindi - ईश्वर स्वयं नियमों में बंधा हुआ है

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ईश्वर की सुव्यवस्थित सृष्टि का कण-कण नियम-बंधनों में बँधा हुआ है। इतना बड़ा शासनतंत्र बिना नियम व्यवस्था के चल भी नहीं सकता। सूर्य और चंद्रमा नियत समय पर उदय होते हैं, पृथ्वी नियत मार्ग पर नियत चाल से चलती है। ऋतुएँ समय पर आती हैं। बीज अपने नियम और क्रम से उगते और बढ़ते हैं। जन्म, वृद्धि और मृत्यु के चक्र में हर पदार्थ जकड़ा हुआ है। यहाँ अव्यवस्था के लिए तनिक भी गुंजाइश नहीं। ईश्वर भी अपना काम तभी कर पा रहा है, जब उसने अपने आप को नियम और व्यवस्था के अंतर्गत बाँध लिया है। प्राणियों को उनके शुभ-अशुभ कर्मों के आधार पर उन्नति-अवनति के प्रतिफल प्रदान करता है। यदि वह इसमें अव्यवस्था उत्पन्न करे तो सृष्टि का सारा क्रम ही बिगड़ जाए। 

प्रार्थना करने मात्र से मनमाने  उपहार देने लगे तो फिर प्रयत्न और पुरुषार्थ करने के लिए किसी को क्या आकर्षण रह जाएगा? फिर कर्मफल का तथ्य तो एक उपहास की बात बन जाएगा। कोई न्यायाधीश वस्तुस्थिति पर ध्यान दिए बिना प्रार्थियों की अर्जी-मर्जी के अनुरूप फैसले करने लगे, सुविधाएँ देने लगे तो उसे पागल ही कहा जाएगा। ईश्वर ऐसा पागल नहीं है। देवता या सिद्धपुरुषों को भी इतना नासमझ नहीं माना जाना चाहिए कि हर किसी की उचित-अनुचित सहायता के लिए धर दौड़ें और पात्रता, अधिकार एवं कर्मफल के सुनिश्चित तथ्यों को मटियामेट करके अव्यवस्था फैला देने के दोषी बनें।

गुरुजन कृपा अवश्य करते हैं और उनके आशीर्वाद से लोगों का लाभ भी अवश्य होता है, पर वह कृपा विशुद्ध रूप में प्रार्थी की पात्रता पर निर्भर रहती है। देवता वरदान देते हैं, ऐसे असंख्य उपाख्यान पुराणों में मिलते हैं, पर स्मरण रखना चाहिए कि वे वरदान भी अंधाधुंध नहीं, किसी आधार पर मिलते हैं। असुरों ने बड़े-बड़े आश्चर्यजनक वरदान पाए थे, पर उनका मूल्य उन्होंने घोर तपश्चर्या के रूप में चुकाया भी था। हमारी तरह यदि वे भी दर्शन करके या चंदन अक्षत चढ़ाकर थोड़ी-सी पूजा-पत्री से बड़ी-बड़ी आशाएँ लगाए बैठे रहते तो उन्हें भी...।
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