“राजधर्म” के साथ, कुछ ओर भी बता गये अटल जी ! | EDITORIAL by Rakesh Dubey

यूँ तो अटल बिहारी वाजपेई का जन्म बटेश्वर उत्तरप्रदेश में हुआ था, परन्तु मध्यप्रदेश उन्हें रास आ गया था। ग्वालियर के बाद उनका पसदीदा शहर भोपाल हुआ करता था। जनसंघ, जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी के भोपाल में आयोजित हर महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उनकी हिस्सेदारी रही, लेकिन 1991 के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश की राजनीति से खुद को अलग कर लिया था। भोपाल में वे अनेक बार प्रेस से मुखातिब हुए, वे कई पत्रकारों को नाम लेकर बुलाते थे। खास खबर को गुपचुप बताने के स्थान पर उसे सबके सामने खुले रूप से कहने में विश्वास रखते थे। 1980 के दशक में हमारी खूब जान- पहचान हो गई थी। भोपाल आते तो स्टेशन या हवाई अड्डे पर देखते ही कुशल क्षेम पूछते। उनकी राजनीति में साफगोई थी। मध्यप्रदेश के एक बड़े नेता को भाजपा बनने के साथ विधायक विश्राम गृह के खंड 1 के हाल में एक बैठक के दौरान उन्होंने जो सबक दिया था उसे दूसरे दिन एक किस्से के रूप में सार्वजनिक किया। व्यक्ति का प्रतिमान पंछी में बदल कर लेकिन उसके बाद सब भूल गये, जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने उनसे आम सभा के बाद पूछा तो उन्होंने कहा इससे ज्यादा इस विषय कुछ कहा नहीं जा सकता है। विषय समाप्त, मैं तो भूल गया आप क्यों याद रखे हैं ?

ऐसी कई यादें और किस्से अटल जी छोड़ गये हैं। भाजपा के राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेतृत्व को उनसे बहुत कुछ सीखना चाहिए, कम से कम वाणी की सत्यता। आज भाजपा के राष्ट्रीय और प्रादेशिक शीर्ष पर बैठे नेताओं के छवि उनके बोल-वचन से कभी भी संदेह के घेरे में आ जाती है। अनेक बार ऐसे उदहारण सामने आते हैं, जिनमे सत्य का अभाव होता है। अटल जी बात सौ टंच खरी होती थी, कोई मिलावट नहीं। पूर्ण पारदर्शिता दिखती थी। अब इस पारदर्शिता का क्षरण हो रहा है। लखनऊ और विदिशा से एक साथ चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने साफ़ संकेत दिया था कि अब वे मध्यप्रदेश की राजनीति से मुक्त हो रहे हैं। कारण भी बताया था, “कुछ लोगों को कुछ करने का मौका मिलना चाहिए।”

फिर अटल जी ने 1991 का चुनाव लखनऊ के साथ विदिशा से भी लड़ा था लेकिन बाद में उन्होंने लखनऊ को चुना और विदिशा को छोड़ दिया था। इसी के चलते भाजपा ने तब के युवा नेता शिवराज सिंह को विदिशा से उपचुनाव लड़ाया और शिवराज 2005 तक विदिशा के सांसद रहे। शिवराज ने उन्हें विदिशा संसदीय क्षेत्र से वापिस चुनाव लड़ने का भी अनुरोध किया ,लेकिन, अटल जी नही लौटे। प्रतिपक्ष हो अपनी पार्टी के लोग अटल जी ने सब जगह सत्य की खरी राजनीति की। सांसद, मंत्री और प्रधानमन्त्री तक “देश प्रथम” का संदेश देकर वे चले गये। “राजधर्म” और “राष्ट्र धर्म” का मन्त्र दे गए हैं, कोई माने तो ठीक, माने तो उसकी मर्जी। उनके सिद्धांत उनके नाम की तरह अटल हैं। प्रणाम अटल जी! 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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