राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह बात अब पूरी तरह साफ हो गई है कि भारतीय जनता पार्टी ने तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में अपने मुख्यमंत्रियों पर विश्वास जताते हुए फैसला किया है और पार्टी यह चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़ेगी। तीनों राज्यों के परिणाम अपने पक्ष में लाने के लिए केन्द्रीय नेतृत्व विशेष योजना बना रहा है। इन तीनों मुख्मंत्रियों को चुनाव में मुख्य चेहरा बनाने के पीछे विकल्प न होना प्रमुख कारण माना जा रहा है। इस फैसले से उन लोगों को निराशा हो सकती है जो राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन चाहते थे, छत्तीसगढ़ में चाहते थे कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं की जाए और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रहे थे। यद्यपि विरोध सतह पर नहीं उभरा है, पर इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि सारे विरोधी शांत हो गये है। टिकट के फैसलों की बैठक में मुख्यमंत्री न रहे, इसके लिए कवायद जारी है, इसकी सम्भावना कम होते हुए भी विरोधी खेमों को विश्वास है कि टिकट के बंटवारे में बाज़ी पलट सकती है।
राजस्थान में फरवरी में हुए उपचुनाव में अजमेर और अलवर संसदीय सीटों और मंडलगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस से मिली हार के बाद बीजेपी में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग उठने लगी। राजे तो बच गईं लेकिन उनके वफादार अशोक परनामी को राजस्थान भाजपा प्रमुख के पद में हटा दिया गया। राजे और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह में मतभेद की वजह से राजस्थान बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए किसी नाम पर फैसला नहीं हो सका है।अमित शाह राजस्थान में चुनाव अभियान की कमान अपने हाथों में रखेंगे। शाह की टीम ने उनके लिए जयपुर में घर देखने भी शुरू कर दिया है, जहां से वे चुनाव अभियान को निर्देश दे सकेंगे, जैसा उन्होंने बंगलूरू के एक घर में रहकर कर्नाटक चुनाव में किया था।
मध्यप्रदेश में कोलारस और मुंगावली विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के नाकाम रहने के बाद नई दिल्ली में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व के सामने खतरे की घंटी बज गई थी। जिसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री के करीबी और प्रदेश पार्टी अध्यक्ष नंद कुमार चौहान को हटाकर जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को पद सौंप दिया। पार्टी में दिल्ली में उछाले गये इस जुमले से सर्वाधिक नाराजी है कि "शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के एक ताकतवर ओबीसी नेता हैं, और बीजेपी में निर्णय करने वाले सबसे बड़े निकाय, संसदीय बोर्ड के सदस्य भी हैं” पार्टी उन्हें इस कारण से नहीं हटा सकती, ऐसा प्रचार मुख्यमंत्री के आरक्षण समर्थक भाषण के बाद ज्यादा किया गया। अपने भाषण में शिवराज सिंह ने कहा था कि “आरक्षण हटाने की ताकत किसी के बाप में भी नहीं है।” प्रदेश में एक खेमा और है जो प्रदेश में अगला मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति से बनाने की सिफारिश में लगा है। इस खेमे का नेतृत्व एक वरिष्ठ मंत्री कर रहे हैं। टिकट वितरण में इस बार भारी असंतोष उभर सकता है।
छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार के मुखिया हैं। वे बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहने वाले नेता हैं। वे दिसंबर 2003 से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। डॉक्टर रमन सिंह गैर-जनजातीय समुदाय से आने वाले राजनेता है। लेकिन आदिवासी आबादी वाले पड़ोसी राज्य झारखंड में एक गैर-आदिवासी रघुबर दास को मुख्यमंत्री बनाने के बाद छत्तीसगढ़ में पार्टी का एक वर्ग चाहता है कि रमन सिंह की जगह पर कोई आदिवासी मुख्यमंत्री बने।
अभी यह कहना मुश्किल है कि केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले को सारे गुट स्वीकार कर चुके हैं, इसकी कवायद जारी है। फैसले से नाराज लोगों को मनाने में संघ की मशीनरी को भाजपा नेतृत्व ने सक्रिय किया है। टिकट वितरण,चुनाव और परिणाम तक बहुत से परिवर्तन होंगे यह निश्चित है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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