
नाम गिनाने की फिलहाल जरूरत नही। मुद्दा यह है कि क्या भाजपा मौजूदा विधायकों पर दवाब बना रही है। करीब 6 माह पहले आरएसएस की एक रिपोर्ट की चर्चा हुई थी। बताया गया था कि करीब 70 विधायक खतरे में हैं। जनता उनसे नाराज है। विधायकों को चेतावनी दी गई थी कि वो अपना प्रदर्शन सुधारें और नियमित रूप से जनता के बीच जाएं। इसके बाद विधायकों की आवाजाही भी बढ़ी। तब से अब तक भाजपा का आंतरिक सर्वे, प्राइवेट ऐजेंसियों के 2 सर्वे और एक बार फिर आरएसएस का सर्वे सामने आ रहा है।
इस बार कहा जा रहा है कि करीब 100 विधायकों के टिकट खतरे में हैं। इनमें से 70 के तो पक्के ही कटेंगे। इसके इतर एक और खबर बार बार सामने आती है कि भाजपा के लगभग हर दिग्गज नेता के बालक या कन्याएं अब चुनाव लड़ने योग्य हो गईं हैं। सोशल मीडिया चुगली करती है कि वो ना केवल अपने पिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं बल्कि कई दूसरे क्षेत्रों के संपर्क में भी हैं। इसके अलावा जो परंपरागत दावेदार हैं उनकी संख्या भी कम नहीं है। फिर क्यों ना संदेह किया जाए कि बार बार सर्वे कराकर दिग्गज अपने विधायकों का मनोबल तोड़ रहे हैं और जमीन तैयार कर रहे हैं कि वो टिकट कटवाने के लिए तैयार रहें।
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