राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी राज्य सभा में तो बहुमत में थी ही नहीं कर्नाटक चुनाव के बाद के घटनाक्रम ने उसे लोकसभा में भी अकेले [एनडीए नहीं] बहुमत से दूर कर दिया है। बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों के आंकड़े से भाजपा पीछे खिसक गयी है। लोकसभा में स्पीकर को छोड़कर भाजपा के पास लोकसभा में केवल 270 सीटें शेष बची हैं। उप चुनावो में यदि वह सफल नहीं होती तो उसे संकट का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में सहयोगियों के तेवर तल्ख हो जाते है।
भाजपा की यह स्थिति कर्नाटक चुनाव के बाद हुई, जब स्पीकर ने कर्नाटक के दो सांसद-बीएस येदियुरप्पा और बी श्रीरामुलु के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया। दोनों नेता कर्नाटक विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बने और जीत हासिल की और दोनों नेताओं ने विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ के साथ अपनी संसदीय सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने अपने सांसद कीर्ति झा आजाद को निलंबित कर रखा है। एक सांसद शत्रुघ्न सिन्हा इन दिनों बागी तेवर अपनाए हुए हैं। ऐसे में पार्टी अगर उन्हें भी निलंबित कर देती है, तो लोकसभा में भाजपा के सांसदों की संख्या 269 रह जाएगी।
इसका यह अर्थ नहीं है कि पीएम मोदी की सरकार अल्पमत में आ गयी है, अब भी एनडीए के पास बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें हैं लेकिन अब भाजपा अकेले दम पर सरकार में बने रहने की स्थिति में नहीं है। चार सालों में पार्टी की सीटें घटने के बड़े मायने हैं। इससे एनडीए के सहयोगी दलों पर पार्टी की निर्भरता बढ़ गयी है। भाजपा की सीटें कम होने की वजह पिछले कुछ दिनों में हुए इस्तीफों के साथ लोकसभा उपचुनावों में उसकी हार भी रहा है। इनमें उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर सीट, पंजाब में गुरुदासपुर, राजस्थान में अलवर और अजमेर सीट, मध्यप्रदेश में भिंड सीट शामिल है। यह बात दीगर है कि कुछ उपचुनावों में भाजपा ने अपनी सीटें बरकरार भी रखी। उसे गुजरात के वडोदरा, मध्यप्रदेश के शाहडोल और असम के लखीमपुर सीट पर उसे जीत हासिल हुईं।
वैसे भाजपा के पास अकेले दम पर बहुमत तक पहुंचने का एक और मौका है। आगामी 28 मई को चार लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। इसमें महाराष्ट्र की भंडारा-गोंदिया सीट और पालघर सीट, उत्तर प्रदेश में कैराना की सीट और नगालैंड में एक सीट शामिल है लेकिन इन जगहों पर जीत हासिल करना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि यहां इस राष्ट्रीय पार्टी को क्षेत्रीय दलों से कड़ा मुकाबला है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।