कमलनाथ कांग्रेसियों की पहुंच से दूर, कार्यकर्ता नाराज

भोपाल। राहुल गांधी दावा करते हैं कि कांग्रेस में कार्यकर्ता महत्वपूर्ण है। उसका अपमान नहीं होगा परंतु 23 दिग्गज कार्पोरेट कंपनियों के मालिक नाथ परिवार के मुखिया कमलनाथ ने मप्र कांग्रेस कमेटी को भी एक कार्पोरेट कंपनी की तर्ज पर ढाल दिया है। विभिन्न जिलों के बड़े नेता भी कमलनाथ तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। पीसीसी में कोई सीधे मुंह जवाब देने वाला ही नहीं है। कमलनाथ की कोठी पर कुछ अधिकारी तैनात हैं जो बिना अपॉइंटमेंट आने वाले नेताओं को बेइज्जत कर भगा रहे हैं। सीएम हाउस और कमलनाथ के आवास की स्थिति एक जैसी ही है। आम कार्यकर्ता के लिए यहां खड़े रहने तक को कोई जगह नहीं है। 

राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा कहते हैं कि कमलनाथ ने हमेशा केंद्र की राजनीति की है, वे केंद्र में कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे हैं। जहां तक राज्य में राजनीति का सवाल है तो वे महाकौशल के अलावा कहीं भी ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। यह बात अलग है कि उनके समर्थक प्रदेश के लगभग हर हिस्से में है। संगठन की बड़ी जिम्मेदारी पहली बार उनके हाथ में आई है, लिहाजा उसे बेहतर तरीके से संचालित कर पाना आसान नहीं है।

राज्य में कांग्रेस की कमान अरुण यादव से कमलनाथ के हाथ में आने के बाद बीते एक माह में पदाधिकारियों में बदलाव का दौर ही पूरा नहीं हो पाया है। इतना ही नहीं अभी तक प्रदेश की कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है। कार्यकर्ता पार्टी दफ्तर पहुंचता है तो उसका अध्यक्ष से मिलना संभव नहीं हो पाता है।

बुंदेलखंड से भोपाल पहुंचे एक नेता ने बताया कि वह प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ से मुलाकात करने उनके बंगले पर पहुंचा तो दो ऐसे अफसर मिले जो स्वयं कमलनाथ से जुड़ा बताते हैं, सवाल करते हैं कि क्या साहब से समय लिया है और डांटते हुए कहा कि ये कोई घूमने फिरने की जगह नहीं है।

अध्यक्ष बदलने के साथ कार्यकर्ताओं को लगने लगा है कि पार्टी ही बदल गई है। एक पूर्व पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वे दो दशक से कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं, कई पदों पर रहे हैं, मगर यह पहला मौका है जब कार्यकर्ता और नेता के बीच दूरी नजर आ रही है। कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव तक पहुंचने में किसी तरह की बाधा नहीं आती थी, मगर अब तो हाल ही निराला है।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि सवाल है कि, कमलनाथ ने बीते चार दशक में जिस तरह की राजनीति की है, उसमें कैसे बदलाव आ सकता है। उनको घेरे रखने वाले अफसर, अपने को कमलनाथ से बड़ा नेता मानते हैं, वे अब तक यह भूल ही नहीं पाए हैं कि उनके साहब अब केंद्र सरकार के मंत्री नहीं बल्कि पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी उन पर है। कमलनाथ और कार्यकर्ताओं के बीच दीवार के तौर पर खड़े रहने वालों के नजरिए में बदलाव नहीं आया तो कांग्रेस के लिए जमीनी जंग जीतना आसान नहीं होगा।

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