भाजपा में शिवराज सिंह और ब्राह्मणों के ​बीच तनाव

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी में सीएम शिवराज सिंह और ब्राह्मण नेताओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। ब्राह्मण समाज को भाजपा को पक्का वोटबैंक माना जाता था परंतु इस बार यह जनाधार खिसकता नजर आ रहा है। कहा जा रहा है कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है। पिछले 14 सालों में सीएम शिवराज सिंह ने एक-एक करके सभी ब्राह्मण नेताओं को हाशिए पर ला दिया। इतना ही नहीं उन्होंने कुछ फैसले और बयान भी ऐसे दिए जो ब्राह्मण समाज को नाराज करने के लिए काफी थे। बीते रोज करियर काउंसलिंग के दौरान सीएम शिवराज सिंह 'जातिवाद' संबंधित सवाल पूछने वाला छात्र भी ब्राह्मण था। संगठन में इस बात को नोटिस किया गया है। 

बीजेपी में बड़े ब्राह्मण नेताओं की उपेक्षा

दरअसल ब्राह्मणों को मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का समर्थक माना जाता रहा है। लेकिन प्रमोशन में आरक्षण मामले में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए 'माई का लाल' बयान के बाद स्थितियां बदल गई। ब्राह्मण समाज मुखर होकर सामने आ गया है और वो शिवराज सिंह को कतई स्वीकारने को तैयार नहीं है। रही सही कसर पार्टी में प्रदेश में लंबे समय से ब्राह्मण समाज के नेताओं को लूप लाइन में डालने से हो गई। पार्टी के पास पहले पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, पूर्व कैबिनेट मंत्री अनूप मिश्रा, लक्ष्मीकांत शर्मा और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा जैसे इस वर्ग में पैठ रखने वाले नेता थे। कैलाश जोशी उम्र के चलते साइड लाइन कर दिए गए। बाकी को पार्टी ने हाशिए पर डाल दिया।

नहीं है कोई बड़ा ब्राह्मण नेता

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की कैबिनेट में कई ब्राह्मण मंत्री भी हैं, लेकिन इनकी समाज के प्रति सक्रियता कभी भी नहीं रही। जो समाज में सक्रिय हैं वो मंत्री तो हैं परंतु शक्तिवहीन कर दिए गए हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो संगठन और सरकार में एक भी बड़ा ब्राह्मण नेता नहीं है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से आते हैं। क्षत्रिय वर्ग से प्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर, नंदकुमार सिंह चौहान और कप्तान सिंह, भूपेंद्र सिंह जैसे धाकड़ नाम शामिल हैं, लेकिन ब्राह्मण वर्ग में बड़े नेताओं का टोटा है।

कैलाश जोशी थे बड़े नेता

पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी प्रदेश में भाजपा के आधार स्तंभ माने जाते थे। 2014 तक वे भोपाल के सांसद रहे। 2003 में उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा सत्ता में आई थी पर अब वे सक्रिय नहीं हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के निधन के बाद केंद्र में प्रदेश का ब्राह्मण प्रतिनिधित्व खत्म हो गया है।

अनूप मिश्रा को अपमानिता किया जा रहा है

2013 से पहले तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा भाजपा सरकार में ब्राह्मणों के दमदार नेता माने जाते थे। कुछ समय से अपनी ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं। इसी हफ्ते उन्होंने मुख्यमंत्री को लगातार हो रही अनदेखी को लेकर पत्र लिखा है। अनूप सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि उनका पार्टी में अपमान हो रहा है। और ये अपनी पराकाष्ठा पार कर चुका है। हालत ये है कि मुरैना से सांसद अनूप की उनके संसदीय क्षेत्र में छोटे अधिकारी तक नहीं सुनते। जिला प्रशासन उनको स्थानीय कार्यक्रमों तक में नहीं बुलाता।

लक्ष्मीकांत शर्मा को खत्म कर दिया गया, रघुनंदन भी हाशिए पर

पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा प्रदेश सरकार में मंत्री होने के साथ ही ब्राह्मण वर्ग में खासी पैठ रखा करते थे। विधानसभा चुनाव में हार के बाद और व्यापमं मामले में जेल जाने के बाद राजनीति से दूर कर दिए गए। इसी तरह ब्राह्मण नेता रघुनंदन शर्मा से भी भाजपा संगठन ने दूरी बना रखी है। शर्मा अपनी अनदेखी से इस कदर नाराज है कि उन्हें जब भी मौका मिलता है अपनी ही पार्टी की सरकार को घेरने से नहीं चूकते।

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