राकेश दुबे@प्रतिदिन। मकान बनाना आसान नहीं है। मकान बनाने के धंधे में में लगे लोग बिल्डर कहलाते हैं और ये उपभोक्ता को राहत के नाम पर मुसीबत में फंसा देते हैं। सरकार अब यह समझने लगी है। केंद्र सरकार ने बिल्डरों से घर खरीदने वालों को राहत देने के लिए एक और कदम उठाया है। हालांकि यह कहना कठिन है कि होम बायर्स को इससे कोई राहत मिल सकेगी या नहीं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड’ में बदलाव को मंजूरी दे दी है। इसके तहत रीयल एस्टेट कंपनी के दिवालिया होने पर उसकी संपत्ति की नीलामी से जुटाई गई राशि का एक हिस्सा घर खरीदारों को भी मिलेगा। अब तक केवल कर्ज देने वाले बैंकों को ही बिल्डर की संपत्ति में हिस्सा मिलता था। इस तरह कम से कम सैद्धांतिक रूप से खरीदारों का दर्जा बैंक के बराबर हो गया है। यह फैसला उन लोगों को ध्यान में रखकर किया गया है, जिनके पैसे आधे-अधूरे बने प्रॉजेक्ट्स में फंसे पड़े हैं। ऐसे ही लोगों की शिकायतों को देखते हुए सरकार ने बैंक्रप्सी कोड में बदलाव के लिए १४ सदस्यीय इन्सॉल्वेंसी लॉ कमेटी का गठन किया था।
इस कमेटी ने सिफारिश की थी कि दिवालिया बिल्डर की संपत्ति बेचने के बाद उन घर खरीदारों को भी हिस्सा दिया जाए, जिन्हें पजेशन नहीं मिला है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बिल्डर के दिवालिया होने पर घर खरीदारों को किनारे नहीं कर दिया जाना चाहिए। इस बदलाव के अभाव में घर खरीदारों को न पैसे मिलेंगे, न घर। फिलहाल केंद्र सरकार कमेटी द्वारा सुझाए गए इन बदलावों को अध्यादेश के जरिए लागू करेगी, फिर संसद में इस आशय का बिल पेश कियाजायेगा।
दिल्ली-एनसीआर देश के अनेक भागों में कई बिल्डरों ने होम बायर्स द्वारा मकानों के लिए दिए गए धन को दूसरे कामों में लगा दिया। इससे कई सारे प्रॉजेक्ट हवा में लटक गए और ग्राहक दस-दस साल से अपने घर के लिए टकटकी लगाए बैठे हैं। काफी समय से देखा जा रहा है कि सरकारें हाउसिंग और रियल स्टेट को लेकर जो भी फैसले करती है, वे ग्राहकों में काफी उम्मीद जगाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उन्हें इनका कोई लाभ नहीं मिलता। दरअसल, इन फैसलों पर अमल राजनेताओं से लेकर नौकरशाही तक किसी के अजेंडे में ही नहीं होता। जैसे, बड़े जोर-शोर से रेरा कानून आया।
कहा जा रहा है इस नये कदम से बिल्डरों की मनमानी पर अंकुश लगेगा। लेकिन कुछ राज्यों में रेरा लागू हुआ है, वहां भी न तो इसका दफ्तर दिखता है, न स्टाफ। लोग शिकायतें लेकर पहुंचते हैं तो अधिकारी ही नहीं मिलता। सरकार के ताजा प्रस्ताव को लें तो किसी दिवालिया हाउसिंग कंपनी की नीलामी आसान नहीं है। आधे-अधूरे प्रॉजेक्ट भला कौन खरीदना चाहेगा? बिल्डरों का काम ही सबसे बनाकर चलना है, इसलिए उनके खिलाफ सख्ती कोई नहीं करना चाहता। रोजगार की सबसे बड़ी संभावना वाले रीयल स्टेट सेक्टर की यह गति देश के लिए भी चिंताजनक है, इसलिए सरकारें सबसे पहले यह दिखाएं कि वे अपने बनाए कानूनों को लेकर गंभीर हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।