जीवाजी यूनिवर्सिटी: बिना टेंडर 70 लाख की खरीदी, घोटाला | GWALIOR MP NEWS

GWALIOR: जीवाजी यूनिवर्सिटी में स्केम खत्म होने का नाम ही नहीं लेते है। इस बार मामला यूनिवर्सिटी में बिना टेंडर के सामान खरीदी का है, जिसमें यूनिवर्सिटी के लोगों ने अपनी मर्जी से अपने चहेतों को लाभ पहुचानें के लिए 70 लाख रूपए से ज्यादा की खरीददारी कर ली। इस मामले का खुलासा आरटीआई के जरिए हुआ है, जिसके बाद मामला राजभवन से लेकर सरकार के पास पहुंच गया है। ऐसे में यूनिवर्सिटी प्रबंधन मामले को छुपाने की पुरजोर कोशिश में लग गया है। ग्वालियर की जीवाजी यूनिवर्सिटी में 42 डिपार्टमेंट हैं। इन सभी में लगभग 200 प्रिंटर हैं। ये सभी डिपार्टमेंट अपनी परचेज कर लेते हैं। इनके बिल पांच हजार से कम होते हैं। एक साल में इस तरह की लगभग 70 लाख रुपए की खरीद होती है। इस तरह का क्रम पिछले दस साल से अधिक समय से चल रहा है। इसमें होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ही फाइनेंस कंट्रोलर और ऑडिट द्वारा आपत्ति जताई जा चुकी है। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस प्रक्रिया को नहीं बदला है।

यूनिवर्सिटी के विभिन्न डिपार्टमेंट में लगे प्रिंटरों की कार्टिज भरवाने के बजाय नई खरीद के बिल दर्शाए जा रहे।जो कार्टिज बाजार में 200 रुपए में आसानी से भर सकती है, उसके स्थान पर 4900 रुपए की नई कार्टिज खरीद के बिल पास कर दिए गए। पांच-पांच हजार रुपए से कम राशि के इस तरह से सालभर में 60 से 70 लाख रुपए के बिल लगाकर भुगतान किए गए। जबकि यही कार्य टेंडर के जरिए कराए जाने थे। शासन ने खरीद के लिए भंडार क्रय नियम-7 बनाया है। जिसमें एक लाख रुपए या उससे अधिक का सामान टेंडर और 20 हजार रुपए से अधिक और एक लाख रुपए से कम का सामान कुटेशन के माध्यम से खरीदा जाएगा। लेकिन ऐसा नही हुआ। 

अगर कोई सामान किसी विभाग में अधिक मात्रा में लगता है, तो उसके लिए टेंडर बुलाए जाने का प्रावधान है। इससे विभाग को मार्केट में कंपटीशन का फायदा मिलता है, और रेट भी सही मिलते हैं। साथ ही उसमें पूरी तरह से पारदर्शिता होती है, लेकिन जेयू इस तरह पारदर्शिता में विश्वास नहीं रखकर छोटे बिल से खरीदारी की। यह खरीदारी कई वर्षों से चल रही है, जबकि विश्वविद्यालय वित्त संहिता अध्याय-7 भंडार नियमों के प्रावधानों के अंतर्गत सेंट्रल परचेज की जानी चाहिए थी। 

आरटीआई में खुलासा हुआ है, कि जीवाजी यूनिवर्सिटी के अफसरों ने बिना टेंडर पांच-पांच हजार रुपए से कम के रनिंग बिलों के सहारे सालभर में 70 लाख रुपए की स्टेशनरी व प्रिंटर कार्टिज खरीद लिए। टेंडर में थोक में यह सामान 50 फीसदी से कम मतलब 35 लाख रुपए में आ सकता है। इस मामले में लोकल फंड ऑडिट ने भी आपत्ति दर्ज कराई है कि हर साल इस तरह से बिल पास कराए जाते हैं। 

जीवाजी यूनिवर्सिटी की सेंट्रलाइज परचेजिंग को लेकर यूनिवर्सिटी के फाइनेंस कंट्रोलर और लोकल फंड ऑडिट ने 30 से अधिक पत्र यूनिवर्सिटी की कुलपति को लिखे। इस आपत्ति में उल्लेख है, कि यूनिवर्सिटी ने ऐसे देयक प्राप्त हो रहे हैं, जिसमें सीधे विभागाध्यक्षों द्वारा खरीद की जा रही है। जबकि विश्वविद्यालय की वित्त संहिता अध्याय-7 भंडार के प्रावधानों के तहत खरीदी क्रय भंडार के माध्यम से ही कराई जानी चाहिए। ऐसा न करने से यूनिवर्सिटी को आर्थिक हानि होती है। जिस पर यूनिवर्सिटी की अपनी अलग ही दलील है।

वैसे जीवाजी यूनिवर्सिटी में हर महीने बिना टेंडर प्रक्रिया के लाखों रुपए की खरीदारी की जाती है। इसके लिए नियम कायदों का लाभ उठाते हुए टुकड़ों में पांच हजार रुपए से कम के बिल पास कराए जाते हैं। इस खरीद के लिए सिर्फ कुटेशन की जरूरत होती है, जो शहर की गिनी-चुनी फर्मों से मंगा लिए जाते हैं। हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में इसका खुलासा हुआ है कि जेयू में हर महीने पांच हजार रुपए से कम राशि के 15-20 बिल कंप्यूटर एसेसरीज के नाम पर पास कराए जाते हैं। जबकि शासन ने खरीद के लिए भंडार क्रय नियम-7 बनाया है। लेकिन अब मामला उजागर हो गया है।
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