श्रीमद डोंगौरी। देश में इन दिनों अजीब सा माहौल है। सत्ता बदले 4 साल हो गए लेकिन लगता है जैसे कल ही बदली है। 70 साल बाद सत्ता मिली है तो दंभ तो होगा ही लेकिन कुछ अजीब सा है। कुछ अटपटा सा। ना उल्टा और ना सीधा। थोड़ा डेढ़ा है। सामने वाले को शायद गर्व महसूस होता होगा परंतु मैं बस आश्चर्यचकित रह जाता हूं कि क्या विचार या बयान ऐसा भी हो सकता है।
भाजपा के एक बड़े बुद्धिजीवि का सोशल मीडिया पर ताजा पोस्ट देखा। वो सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों की प्रेस कांफ्रेंस से रिलेटेड था। ज्ञान, विवेक और बुद्धिकौशल का पेटेंट करा चुके मेरे दोस्त ने लिखा: जिन्हें थोड़ी भी समझ है वे सुप्रीम कोर्ट के आज के विवाद पर कुछ न बोलें। देश की न्यायिक सँप्रभुता और प्रतिष्ठा सर्वोपरि है।
मैं इसके पक्ष या विपक्ष में नहीं जा रहा हूं, मैं तो केवल इस लाइन को देखकर चौंक गया हूं, जिसमें लिखा है 'जिन्हें थोड़ी भी समझ है', क्या मेरा प्रिय मित्र इस वाक्य की जगह 'कृपया' शब्द का उपयोग नहीं कर सकता है। ये कैसी बद्तमीजी है, जो इन दिनों खुलेआम की जा रही है। क्या मेरे मित्र यह नहीं कह रहे कि जितने भी लोगों ने इस प्रकरण पर कुछ बोला है वो समझदार नहीं हैं। बात को रखने का एक सभ्य और शालीन तरीका होता है, दूसरा असभ्य तरीका भी होता है परंतु ये कौन सा नया तरीका खोज लाए।