भारतीय “कुम्भ के मेलों” सी कोई मिसाल नही | EDITORIAL

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय आयोजन “कुम्भ के मेलों” को विश्व धरती पर सबसे बड़े शांति पूर्ण धार्मिक सम्मेलन मानने लगा है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज) का दर्जा दिया है। कुंभ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली यह पहचान योग और नवरोज के बाद किसी भारतीय परंपरा को मिला लगातार तीसरा खिताब है। यूनेस्को की विशेषज्ञ समिति के अनुसार कुंभ मेलों में विभिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। धार्मिक आयोजन के तौर पर कुंभ में जैसी सहिष्णुता और समायोजन नजर आता है, वह दुर्लभ है।

यूनेस्को ने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों को भी संरक्षण देने का निर्णय किया इस पर अमल 2006  से शुरू हो सका। ऐसी धरोहरों के तहत समाज में प्रचलित पर्व, रीति-रिवाज, वाचिक परंपराएं, प्रदर्शनकारी कलाएं, पारंपरिक शिल्प और अन्य पुरानी विधाएं आती हैं। यूनेस्को उन तमाम लोगों और संगठनों के साथ मिलकर काम करता है जो अपने-अपने देश की अमूर्त सामूहिक धरोहरों के संरक्षण में लगे रहते हैं। इसके तहत उन्हें यूनेस्को के सदस्य देशों द्वारा इकट्ठा किए गए फंड से आर्थिक मदद भी दी जाती है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि यूनेस्को उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्रदान करता है जिससे उन पर शोध कार्य बढ़ जाता है, साथ ही उनसे जुड़े स्थलों पर पर्यटन में तेजी आ जाती है।

भारत में कुंभ के  मेले का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा-यमुना के संगम पर, उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे और मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे होता है। इसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इसके पीछे देवासुर संग्राम और समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की पौराणिक मान्यता है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन में निकले अमृत का कलश हरिद्वार, इलाहबाद, उज्जैन और नासिक में थोड़ा-थोड़ा छलक गया था। इसकी शुरुआत कब हुई, इसे लेकर मतभेद है। एक मान्यता यह है कि कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के बाद आदिकाल से ही हो गई थी। 

कुछ विद्वान गुप्त काल से इसकी शुरुआत मानते हैं। पर इसका जो प्राचीनतम लिखित वर्णन उपलब्ध है, वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है और इसे चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने दर्ज किया है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि आदि शंकराचार्य ने इसे एक व्यवस्थित रूप दिया। कुंभ को विश्व स्तर पर महत्व मिलना भारत के लिए एक उपलब्धि है।  अब केंद्र और राज्य सरकारों की नैतिक जवाबदारी बनती है कि वैश्विक धरोहर बने इस आयोजन की गरिमा को कायम रखें |सरकारों को ध्यान रखना होगा कि अब कुंभ मेलों पर पूरी दुनिया की नजर है, लिहाजा इनकी व्यवस्था में कोई  कमी या कोरकसर नहीं छूटे। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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