राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश में उप चुनावों में हो रही हार के लिए भले ही कुछ भी तर्क दे उसे यह समझ लेना चाहिए उसके कामों में और उसकी रणनीति में कहीं कोई लोचा है। कहने को अटेर और चित्रकूट सीट पहले कांग्रेस के पास ही थीं और उसके विधायकों के निधन से यह खाली हुई थीं। इस आधार पर भाजपा कह रही है कि कांग्रेस ने अपनी सीट बचा ली। वैसे यह तर्क उस रणनीति और उस सम्भावना को करारा झटका है जिसके तहत भाजपा 2018 में मध्यप्रदेश विजय का स्वप्न देख रही है।
चित्रकूट हार का एक दूसरा पहलू यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस सीट को प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था और कई सभाएं की थीं। मध्य प्रदेश भाजपा ने इस उपचुनाव को पूरे मनोयोग से लड़ा था और इसके बावजूद यहां मिली उसकी पराजय क्या भाजपा या शिवराज के भविष्य का कोई संकेत है? 2013 में भाजपा चित्रकूट सीट पर 10 हजार 970 मतों के अंतर से पराजित हुई थी, जबकि इस बार वह 14 हजार 133 मतों से हारी है। हार का बढ़ा हुआ अंतर भी कुछ स्पष्ट संकेत देता है। संकेत यह है की मुंगावली और कोलारस कठिन है और इस तैयारी के साथ 2018 का समर और भी कठिन। नीतिकार/ चेहरा मोहरा बदलने की मांग भाजपा के अंदरखाने में उठने लगी है, जो स्वाभाविक है।
इसके कई अर्थ और कारक हैं जिनमे से प्रमुख यह है कि चौहान का जादू चूक रहा है या उनकी लोकप्रियता कम हो रही है? लेकिन इस पराजय की कुछ परिस्थितियाँ और भी हैं जैसे प्रदेश में इस समय किसानों का आंदोलन जगह-जगह चलना। कृषि-उपज का मंडियों में उचित मूल्य न मिलने से किसानों में निराशा। सरकार की भावांतर योजना, जिसका उद्देश्य यह था कि जितने में किसान का पैदावार मंडियों में बिकेगा और वह सरकार के घोषित मूल्य से जितना कम होगा, उतनी राशि सरकार किसान के खाते में जमा करा देगी| इस पर घोषणा के पूर्ण रूप से अमल न होना। सरकार पर दिवास्वप्न दिखाने के आरोप। अति आत्म विश्वास और आत्म मुग्ध्त्ता के साथ ही गैरों पर करम अपनों पर सितम भी है।
भाजपा विरोधी शक्तियों को ऐसे ही कारकों ने अपना स्वर तेज करने का मौका दिया है। सरकार की नीतियों के कारण उन्हें किसानों को लामबंद करने में सफलता मिल रही है। वे सारी शक्तियां अटेर और चित्रकूट में एकत्रित हो गई थीं, जिनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह भाजपा पराजित हो। इसमें उन्हें सफलता मिली। अब उन शक्तियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और आगे आने वाले उपचुनावों और 2018 में वे टुकड़ों-टुकड़ों में बंटी कांग्रेस को वे ज्यादा संगठित होने में मदद करेंगी।
अगर शिवराज सरकार ने किसानों के असंतोष को दूर करने के लिए कदम नहीं उठाया और भावांतर योजना को व्यावहारिक जामा नहीं पहनाया तो अटेर और चित्रकूट के नतीजों विस्तारित होने की संभावना बढ़ जाएगी। यदि इसे राष्ट्रीय फलक पर देखें तो गुरदासपुर लोक सभा उपचुनाव के नतीजे भी जिस तरह संकेत देते है वे भाजपा के लिए चिंता की बात है। ये नतीजे भाजपा के लिए मंथन के अवसर हैं, उसे सोचना चाहिए कि उसे क्या-क्या और कहाँ-कहाँ बदलाव करना है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।