अपनी नीति पहले तय कर ले, नीति आयोग

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कल 1 सितम्बर को नीति आयोग को नया उपाध्यक्ष मिल जायेगा। नीति आयोग को अपनी ही नीति तय करना होगी। नीति आयोग के गठन के उन तमाम लक्ष्यों को दोहराया गया और कहा गया था कि नया संगठन सरकार के थिंकटैंक की तरह काम करे। यह भी कहा गया कि उसे केंद्र और राज्यों को जरूरी तकनीकी तथा अन्य सहायता उपलब्ध करानी चाहिए। इसमें अर्थव्यवस्था को लेकर नीतिगत, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के तथा नए नीतिगत विचार और मुद्दा आधारित सहयोग आदि शामिल हैं। आयोग से अपेक्षा थी कि कोई बाहरी मॉडल भारतीय परिदृश्य पर न थोपा जाए यह सुनिश्चित करने का काम वह करेगा। हालांकि सकारात्मक प्रभाव शामिल किया जा सकता था। 

आयोग से अपेक्षा थी कि वह देश के वृद्धि मॉडल की तलाश के बीच निजी-सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देने की नीति पर काम करेगा। उससे देश के संघीय ढांचे को सशक्त बनाने और राज्यों के बीच तालमेल के लिए काम करना अपेक्षित था। यह भी कहा गया था कि आयोग को बारीकी से यह ध्यान देना चाहिए कि कौन सी बातें भारत में कारगर रहीं और कौन सी नहीं। आयोग को सरकार के थिंकटैंक की तरह काम करने की भी अपेक्षा थी। अब तक इस दिशा में कुछ ठोस काम नहीं हुआ है और इस दिशा में नए उपाध्यक्ष की ओर से अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। तभी निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी और यह सरकारी थिंक टैंक के रूप में काम कर सकेगा। 

संघीय ढांचे को सशक्त बनाना और राज्यों को मशविरा देने का काम तो और बड़ी चुनौती है। योजना आयोग में पास फंड आवंटन की सुविधा थी जिसकी मदद से वह सुनिश्चित नीतियों की दिशा में काम करता था। बीते 32 महीनों में नीति आयोग ने राज्यों को नीतिगत मदद देनी चाही है लेकिन नतीजे और बेहतर हो सकते थे। तीन वर्षीय एजेंडा के दस्तावेज में कई नीतिगत बातें शामिल हैं। परंतु इनका क्रियान्वयन होगा अथवा नहीं, यह देखने वाली बात होगी। जरूरत इस बात की है कि कहीं अधिक प्रभावी और टिकाऊ व्यवस्था विकसित की जाए ताकि आयोग राज्यों के साथ संपर्क प्रगाढ़ कर सके। 

सबसे बड़ी चुनौती होगी प्रशासन और विकास का भारतीय मॉडल तय करना। आखिर यह मॉडल है क्या? यह अन्य मॉडलों से अलग कैसे है? नए उपाध्यक्ष को मशविरा यही होगा कि वे भारतीय विकास के जुमले के शिकार न हों। हालांकि उन्होंने इस बारे में जो कुछ अब तक कहा है वह परेशान करने वाला ही है। मॉडल की सफलता मायने रखती है उसका देसी या विदेशी होना नहीं। 

अगर आयोग थिंक टैंक बनना चाहता है तो कुछ ठोस काम अपेक्षित है। धन की कमी नही है करीब 73 करोड़ रुपये के सालाना राजस्व व्यय के साथ नीति आयोग को बतौर सरकारी थिंक टैंक संसाधनों की कमी तो नहीं ही होनी चाहिए। बस जरूरत थिंक टैंक के सही दिशा में सही समय पर सही सलाह  देने की है। उसकी सलाह से देश कुछ बनेगा, बढ़ेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !