नये उपराष्ट्रपति से गुजारिश

राकेश दुबे@प्रतिदिन। निवर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने देश की व्यवस्था से जुड़े कुछ बुनियादी सवाल उठाए हैं और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को उनके दायित्वों की याद दिलाई है। अंसारी ने  बेंगलुरु के नैशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के 25 वें दीक्षांत समारोह के मौके पर कहा कि आज की चुनौती धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों को दोहराना और पुनर्जीवित करना है। इनमें सहिष्णुता और धर्म की स्वतंत्रता शामिल हैं। उन्होंने कहा कि तमाम तबकों में विविधताओं के बीच आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए सहिष्णुता एक आवश्यक राष्ट्रीय गुण होना चाहिए। सहिष्णुता विभिन्न धर्मों और राजनीतिक विचारधाराओं के बीच संघर्ष के बिना समाज के कामकाज के लिए व्यावहारिक सूत्र है। उन्होंने विवेकानंद के इस कथन को दोहराया कि हमें न सिर्फ दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु होना चाहिए, बल्कि उन्हें सकारात्मकता के साथ अंगीकार करना चाहिए, क्योंकि सभी धर्मों का आधार सच्चाई ही है।

निवर्तमान उपराष्ट्रपति ने भी उसी चिंता को व्यक्त की हैं, जो पिछले कुछ समय से समाज के बीच चर्चा का विषय है। आज हमारे बीच एक तबका ऐसा भी है, जो किसी न किसी रूप में अल्पसंख्यक और कमजोर वर्गों को निशाना बना रहा है। यह हमारे देश और समाज के मूलभूत चरित्र के विपरीत है। सबसे दुखद तो यह है कि कई बार ऐसे तत्वों को राजसत्ता में बैठे लोगों का भी समर्थन मिल जाता है। कई बार प्रशासन ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने में शिथिल पड़ने लगता है। अंसारी का इशारा यही है कि इस प्रवृत्ति को रोका जाए। ऐसे कृत्यों को किसी सिद्धांत के जरिए जायज ठहराने की कोशिश करना तो अपनी व्यवस्था और समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करना होगा। यह उन मूल्यों को कमजोर करना होगा, जिनकी वजह से भारत की विश्व में एक प्रतिष्ठा रही है। अंसारी संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास भी कराना चाहते हैं। वह बताना चाहते हैं कि संविधान के मूलाधार धर्मनिरपेक्षता को बचाए रखना उनकी जवाबदेही है।

नए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू अपने बखूबी पूर्ववर्ती की बात को बखूबी समझेंगे। वे १0 अगस्त को उपराष्ट्रपति का कार्यभार संभालेंगे तो उनके जेहन में यह संदेश जरूर गूंज रहा होगा। वैसे नायडू ने कहा भी है कि अब वह किसी पार्टी के नहीं हैं और उनकी कोशिश सबको साथ लेकर चलने की होगी। उन्होंने कहा है कि वह राज्यसभा की गरिमा बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वह राज्यसभा में सभी पक्षों को साथ लेकर नियमों के तहत चलेंगे और सबकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे। राज्यसभा के सभापति से अपेक्षा की जाती है कि सदन में हर वर्ग की आवाज को बराबर जगह देने के लिए वे प्रतिबद्ध होंगे। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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