सिर्फ रिकॉर्ड मिलान के आधार पर जाति प्रमाण-पत्र फर्जी नहीं: मप्र शासन

भोपाल। वर्ष 1996 के पहले जारी हुए जाति प्रमाण-पत्र को सिर्फ इस आधार पर फर्जी नहीं माना जा सकता है कि उनका रिकॉर्ड कलेक्टर के पास नहीं है। सरकार ने ऐसे किसी प्रमाण-पत्र को अमान्य नहीं किया है। इसके बावजूद पुराने प्रमाण-पत्र को लेकर लोगों को परेशान किया जा रहा है। इन शिकायतों के मद्देनजर सामान्य प्रशासन विभाग ने कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि 1996 के जाति प्रमाण-पत्रों को सिर्फ रिकॉर्ड नहीं होने के आधार पर फर्जी नहीं माना जाए।

यदि जांच की स्थिति बनती है तो विस्तृत जांच कर प्रतिवेदन कलेक्टर को दिया जाए। सामान्य प्रशासन विभाग को ये शिकायतें मिली थीं कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के जाति प्रमाण-पत्रों को लेकर लोगों को परेशान किया जा रहा है।

कलेक्टरों को वर्ष 1996 से पहले के प्रमाण-पत्र पुष्टि के लिए भेजे जा रहे हैं। इनका रिकॉर्ड नहीं मिलने के कारण पुष्टि नहीं होने से प्रमाण-पत्र धारकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जबकि मुख्य सचिव की ओर से 18 जुलाई 1996 को आदेश दिए जा चुके हैं कि एक बार जाति प्रमाण-पत्र जारी होने के बाद सभी जगह के लिए वह मान्य होगा।

ऐसी सूरत में अगस्त 1996 के पहले जारी किए गए प्रमाण-पत्रों को सिर्फ इस आधार पर फर्जी नहीं माना जा सकता है कि उनका रिकॉर्ड कलेक्टर के पास नहीं है। ऐसे मामलों में यदि जांच की स्थिति बनती है तो जांच कर कलेक्टर को रिपोर्ट भेजी जाए।

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