
कृषि क्षेत्र में लगातार उन्नति के लिए मध्यप्रदेश को लगातार पांच बार भारत सरकार का कृषि कर्मण पुरस्कार मिल चुका है। मध्यप्रदेश आलू, लहसून, प्याज उत्पादन में देश में करीब-करीब दूसरे नंबर पर आता है, लेकिन पिछले दिनों किसानों ने सड़कों पर प्याज फैंक दी थी। इससे पहले आलू बेचने आए किसानों को आलू के साथ पैसे भी देने पड़े थे क्योंकि आलू की कीमत इतनी कम थी कि उसकी तुलाई और हम्माली का खर्चा उसके कुल प्राप्त मूल्य से ज्यादा हो गया। लागत की तो बात ही नहीं कर सकते। उपज का मूल्य नहीं मिलने से किसान कर्ज में दबता जा रहा है। कर्ज में दबे किसान मौत को गले लगा रहे हैं।
किसानों की कर्जदारी पर नेशनल ब्यूनरो ऑफ इंडिया का सर्वे बताता है कि मध्यप्रदेश में इस समय सीमांत व छोटे किसान मिलाकर कुल 85 लाख काश्तकार हैं। इसमें से करीब 50 लाख किसान 60 हजार करोड़ कर्जे के बोझ तले दबे हुए हैं। पिछले 14 सालों के भाजपा शासनकाल में किसानों के कर्ज में 10 से 15 फीसदी की वृद्धि हुई है। जिन किसानों पर 13 साल पहले सिर्फ 1 लाख रुपए तक का कर्ज था वह बढ़कर 12 लाख रुपए हो गया है और जिन पर कर्ज नहीं था वे 7 लाख रुपए के कर्ज में डूब गए।