
राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पार्टी में पटेल का कद तेजी से बढऩे लगा। उन्हें पहले कांग्रेस का संयुक्त सचिव बनाया गया, फिर संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और बाद में पार्टी का महासचिव भी बना दिया गया। हालांकि पीवी नरसिंह राव के प्रधानमंत्री रहते समय पटेल को बुरे दिन भी देखने पड़े। माना जाता है कि पटेल की सोनिया तक सीधी पहुंच है।
राज्यसभा का यह चुनाव व्यक्तिगत बन चुका था लिहाजा जीतना भी जरूरी था। इससे अमित शाह को एक साफ संदेश भी भेजा जाना था और वह यह था कि पटेल से न उलझें। 2019 के चुनाव में अमित शाह अहमदाबाद से मैदान में उतर सकते हैं। कांग्रेस को पटेल के गृह राज्य से कितनी सीटें मिलेंगी? इसकी कवायद शुरू हो गई है। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह राज्य सभा चुनाव एक सबक है। तो अमित शाह के कथित राजनीतिक कौशल के चमत्कार का खुलासा भी। भारतीय राजनीति में इस चुनाव में बाबू भाई के जीतने और कांग्रेस से बागियों के निष्कासन के अनेक अर्थ है, कांग्रेस का हौसला बढने के साथ, भाजपा को भी अपने भविष्य की चिंता लग गई है। जो स्वाभाविक है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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