MP के भड़के किसान आंदोलन को देशव्यापी बनाने की रणनीति

संजय मिश्र/नई दिल्ली। कांग्रेस ने देशभर में उभर रही किसानों के असंतोष की मुखर आवाजों को अब अपने राजनीतिक एजेंडे में सबसे ऊपर रखने की रणनीति बना ली है। मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस फायरिंग के बाद दूसरे राज्यों में किसानों के गुस्से और असंतोष को देखते हुए पार्टी किसानों की मांग का नैतिक ही नहीं राजनीतिक समर्थन भी करेगी। किसानों की बदहाली के मसले की आंच ठंडी नहीं हो इसके लिए कांग्रेस देशव्यापी राजनीतिक कार्यक्रम की रूपरेखा भी बना रही है। किसानों की बदहाली के मुद्दे के साथ कांग्रेस अपने राजनीतिक कार्यक्रम में युवाओं को नौकरी नहीं मिलने को दूसरे अहम एजेंडे के रूप में भी शामिल करेगी।

सूत्रों के अनुसार मंदसौर पुलिस फायरिंग में मारे गए किसानों के परिजनों से मिलकर लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मसले पर पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से मशविरा किया है। इसमें पार्टी नेताओं ने एक सुर से यही राय दी कि किसानों के मुद्दे पर राहुल संप्रग सरकार के समय से ही संजीदा रहे हैं, इसलिए कांग्रेस और राहुल दोनों को पूरे देश में किसानों के मुद्दे को न केवल उठाने की जरूरत है बल्कि सड़क पर आने के लिए भी तैयार रहना होगा।

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी के बयान से भी पार्टी की इस रणनीति का अंदाजा लगाया जा सकता है। सिंघवी ने मंदसौर के किसानों से मिलने जाने के राहुल के फैसले पर सवाल उठाने वाले केंद्र सरकार के मंत्रियों के रुख की आलोचना करते हुए कहा कि किसानों की बदहाली दूर करने और देशभर में उनके हक की आवाज उठाने में कांग्रेस व उसका नेतृत्व कोई कसर नहीं छोड़ेगा।

पार्टी रणनीतिकारों ने हाईकमान को यह भी सलाह दी है कि शहरी मध्यवर्ग और युवाओं के समर्थन की वजह से लोकप्रियता की गाड़ी पर सवार मोदी सरकार के सामने तीन साल में पहली बार देश के सबसे बड़े समूह किसानों का स्पीड ब्रेकर दिखाई दे रहा है, इसलिए कांग्रेस और राहुल दोनों को किसी भी हाल में इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। इस लिहाज से किसानों के बीच राहुल के कार्यक्रम और दौरे आने वाले दिनों में बढ़ेंगे।

समझा जाता है कि पार्टी रणनीतिकारों ने यह राय भी जताई कि किसानों के साथ जुड़कर जहां एक ओर राहुल अपनी राजनीतिक गंभीरता स्थापित कर सकते हैं। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई दुर्गति के बाद अब तक संभलने के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस इस मुद्दे के सहारे अपनी राजनीतिक बुनियाद वापस हासिल करने की ओर कदम बढ़ा सकती है।

कांग्रेस नेताओं के मुताबिक इस क्रम में 2004 में वाजपेयी सरकार की लोकप्रियता का उदाहरण सामने है। तब सरकार की लोकप्रियता के चलते ही छह माह पहले लोकसभा चुनाव कराए गए और किसानों के मुद्दे की अनदेखी वाजपेयी सरकार की हार की सबसे बड़ी वजह बनी।

पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि तब भी कांग्रेस संगठन के स्तर पर अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के मुकाबले मजबूत नहीं थी। हालांकि पार्टी नेता यह बात भी कबूल रहे हैं कि कांग्रेस की हालत इस समय 2004 के मुकाबले कहीं ज्यादा कमजोर है। इसलिए राहुल और कांग्रेस के किसानों के मुद्दे को देशव्यापी स्तर पर गरमाए रखने की रणनीति में अन्य विपक्षी दलों को भी साथ जोड़ने की रणनीति बन रही है।

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