
एक ऐसे देश में, जहां राजनेता सरकारी संपत्ति को अपनी निजी संपत्ति मानते हों, चापलूसी करने वालों को जहां ऊंचे ओहदे सौंपे जाते हों और पेशेवर रवैया अपनाने वाले अधिकारियों को खुलेआम बेइज्जत किया जाता हो, वहां टॉप क्लास प्रफेशनलिजम की मांग करने वाले इस सेक्टर में करदाताओं का पैसा झोंककर एक सरकारी कंपनी चलाते रहना खुद में एक नॉन-प्रफेशनल बात ही कही जाएगी। अभी एयर इंडिया के पास घरेलू उड्डयन क्षेत्र का 14.6 प्रतिशत और अंतरराष्ट्रीय दायरे का 17 प्रतिशत कारोबार है। प्राइवेट एयरलाइंस कंपनियां जब तक शुरुआती दौर में थीं, तब तक एयर इंडिया की भूमिका उनके लिए हर पहलू से कुछ मानक तय करने की हुआ करती थी। लेकिन देश का लगभग 86 प्रतिशत उड्डयन कारोबार अभी निजी कंपनियां ही चला रही हैं, और हर दृष्टि से वे एयर इंडिया की तुलना में कहीं ज्यादा प्रफेशनल हैं। एयर इण्डिया पर लदा 50 हजार करोड़ रुपये का कर्ज भी अभी सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है।
यह भी सही है कि जब तक एयर इंडिया को धंधे के लिहाज से पटरी पर नहीं लाया जाता, तब तक निवेशक भी इसमें दिलचस्पी क्यों दिखाएंगे? भारत की पहचान समझी जाने वाली इस कंपनी को कबाड़ की तरह तो नहीं ही बेचा जाना चाहिए। इसलिए जरूरी है व्यवसायिक और जिम्मेदारी पूर्ण समझदारी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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