कर्मचारी नेताओं की संपत्ति की जांच होनी चाहिए: संजय मिश्रा | EMPLOYEE POLITICS

भोपाल। शासन ने तय किया है कि अब कर्मचारी नेताओं का तबादला नहीं किया जाएगा लेकिन कुछ लोगों ने इसका विरोध किया है। सामाजिक कार्यकर्ता संजय मिश्रा का आरोप है कि कई कर्मचारी नेता लाखों में खेल रहे हैं। मामूली तनख्वाह वाले कर्मचारी नेता के पास एक अधिक मकान, दुकान और लक्झरी गाड़ियां हैं। इनकी संपत्ति की जांच होना चाहिए। जब पार्षद से लेकर मुख्यमंत्री और अधिकारियों को अपनी संपत्ति का घोषणा करना अनिवार्य है तो इन कर्मचारी नेताओं की संपत्ति भी उजागर होना चाहिए। साथ ही इन नेताओं की हाजिरी भी चेक होना चाहिए। क्या ये नेता आम कर्मचारी की तरह रोज काम निपटाते हैं? यदि नहीं तो फिर इनको तबादले में छूट देने का क्या औचित्य? 

कर्मचारी नेताओं को तबादले में छूट देने का खामियाजा अन्य कर्मचारियों को भुगतना पड़ेगा। किसी दफ्तर में यदि कर्मचारी नेता सरप्लस होगा तो उसकी जगह किसी दूसरे कर्मचारी का तबादला किया जाएगा। इस कारण संबंधित कर्मचारी के अधिकार का हनन होगा। तबादला नहीं होने की दशा में कर्मचारी नेता को अपने विभागों से लेकर शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अफसरों को नाकों चने चबवाने की ताकत मिल जाएगी। कोई कर्मचारी नेता अपना काम ठीक से नहीं करेगा या दफ्तर नहीं आएगा तब भी अधिकारी उस पर कार्रवाई करने से बचेंगे। तबादले का भय नहीं होने से आंदोलन और हड़ताल में भी इजाफा होगा। कई कर्मचारी नेता ऐसे भी हैं, जो पूरे समय दूसरी गतिविधियों में संलग्न रहते हैं और काम पर नहीं जाते हैं उन्हें और अधिक शह मिलेगी। 

फैसले को कोर्ट में देंगे चुनौती 
कर्मचारी नेताओं को तबादले में रियायत देने के फैसले को एडवोकेट राजेश जोशी में कोर्ट में चुनौती देंगे। उनका कहना है कि इस तरह का फैसला नीतिगत नहीं होकर कर्मचारी को मनमानी करने की छूट देने जैसा है। आखिर किस नियम के तहत और क्यों इन कर्मचारियों को तबादले से मुक्त रखा जा रहा है? क्या ये नेता शासन के नियमों से ऊपर हैं? शासन की मंशा कहीं यह तो नहीं है कि कर्मचारी नेताओं को अपने वश में करके शासन की रीति-नीति के खिलाफ कर्मचारियों की आवाज को दबाया जा सके। 

पांच साल वापस बाहर आया जिन्न 
प्रदेश में कर्मचारी नेताओं के तबादले नहीं होने के आदेश पहले भी निकले हैं। पांच साल से यह व्यवस्था बंद थी। कर्मचारी नेताओं को अब फिर छूट दी जा रही है। बताते हैं, इसके पीछे चुनावी वर्ष होने का कारण भी प्रमुख माना जा रहा है। अकसर चुनाव के समय विभिन्न विभागों के कर्मचारी संगठन अपनी मांगों को लेकर हड़ताल करते हैं। सरकार ने संभावित हड़तालों पर अंकुश लगाने के लिए कर्मचारी नेताओं को यह लालीपॉप दिया है। 

सरकार के फैसले से अफसर खिन्न 
फैसले से अफसरों में काफी नाराजगी है। चूंकि शासन का आदेश है तो कोई भी विभाग प्रमुख या जिला प्रमुख नामजद बयान देने से बच रहे हैं। हालांकि, डीबी स्टार से चर्चा में वे काफी खिन्न नजर आए। अफसरों का कहना है अधिकांश कर्मचारी नेता कुछ काम नहीं करते हैं। यदि तबादले का खौफ नहीं रहेगा तो वे आए दिन धरना-प्रदर्शन करेंगे। शासकीय कार्य में बाधा उत्पन्न करेंगे। बात-बात पर हड़ताल की धमकी देंगे। दफ्तरों में तालाबंदी करवाएंगे। कुछ अफसरों का सीधा सवाल है कि जब अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले होते हैं तो कर्मचारी नेताओं के क्यों नहीं? 

ताकि दिक्कत न हो 
प्रदेश के कर्मचारी संगठनों के नेताओं ने समय-समय पर मांग की थी कि हमें तबादलों से मुक्त रखा जाए। उनका कहना है कि ट्रांसफर होने से संगठन का काम करने में परेशानी आती है। शासन ने यह फैसला इसलिए लिए किया ताकि कर्मचारी नेताओं को दिक्कत न हो।  
लाल सिंह आर्य, मंत्री, सामान्य प्रशासन विभाग 

अब धौंस नहीं दे पाएंगे 
शासन का फैसला कर्मचारियों के हित में है। यह हमारा अधिकार भी है। कर्मचारी नेता जब भी अफसरों की रीति-नीति का विरोध करते हैं तो वे तबादले की धौंस देते हैं। अब कोई अधिकारी ऐसा नहीं कर पाएगा।  
सुरेशचंद्र दुबे, अध्यक्ष, 
मप्र समग्र शिक्षक व्याख्याता एवं प्राचार्य कल्याण संघ 
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