अंबेडकर और उसके बाद शिक्षा | EDUCATION

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कल अंबेडकर जयंती थी, अंबेडकर और उनके बाद पर विचार किया तो समझ आया। अंबेडकर ने जो तीन नारे दिए थे, उनमें खास था ‘शिक्षित बनो’। सरकारों का काम था कि वे जनता को शिक्षित करतीं, पर ज्यादातर सरकारों ने आम जनता को शिक्षित करने की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। गांव की प्राथमिक शिक्षा समाप्त हो गई, निजी स्कूलों के व्यवसायीकरण में शामिल हो राजनीति ने शिक्षा को बेचा और गुणकारी शिक्षा सभी बच्चों को उपलब्ध कराने का संकल्प भुला दिया। 

केंद्र से लेकर राज्यों तक में प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक में शिक्षा को माल की तरह बेचा जा रहा है। अंबेडकर सबको सस्ती और समान शिक्षा चाहते थे। आजाद भारत की एक-दो पंचवर्षीय योजनाओं में सबको साक्षर कर देना चाहिए था। पर निरक्षरता का उन्मूलन करना अब भी दिवास्वप्न बना हुआ है। देश की शिक्षा का स्वास्थ्य यदि खराब है, तो समझो कि सब कुछ खराब है।

अंबेडकर ने अंग्रेजी विद्या को शेरनी का दूध कहा था। आज आम दलित बच्चों को गुणकारी अंग्रेजी शिक्षा देना तो दूर, उन सरकारी स्कूलों की उपेक्षा कर दी गई, जहां वे जा सकते थे। सरकारें, खासकर ग्रामीण भारत की शिक्षा के प्रति आंखें बंद करके बैठ गईं। ऐसे लोगों को शिक्षा विभाग सौंप दिए गए, जो स्वभाव से शिक्षा विरोधी थे।इस शिक्षा-व्यवस्था ने अंग्रेजी ही नहीं, दलितों के लिए मातृभाषा तक में शिक्षा दुर्लभ कर दी। सरकार यही कहती रही कि अगर दलित महंगी निजी शिक्षा नहीं खरीद सकते, तो सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाएं, जबकि इस बीच लाख से अधिक सरकारी स्कूल अकाल मृत्यु के घाट उतारे जा चुके हैं, बचे-खुचे मरणासन्न अवस्था में अंतिम सांसें गिन रहे हैं। 

वे स्कूल दलित बालकों की शिक्षा का भविष्य कैसे बचा पाएंगे? राजनीतिक कारणों से व्यवस्था के लिए अंबेडकर जरूरी और मजबूरी भले बने हुए हों, पर काम उनकी इच्छा के ठीक उलट ही हो रहे हैं। उन्होंने कहा था कि ‘समय आ गया कि प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सस्ती, गुणकारी शिक्षा दलितों व कमजोर वर्गों को सुलभ कराई जाए। क्या यह विडंबना नहीं कि गुलाम भारत में और उसके बाहर  अंबेडकर जिस तरह की अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके, करोड़ों दलित बच्चों को वैसी शिक्षा आजाद भारत की सरकारें नहीं दे सकती हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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