
जाहिर है, इन आंकड़ों से नोटबंदी का विरोध करने वालों के खिलाफ सरकार को जवाब देने का पुख्ता आधार मिल गया है। मगर नोटबंदी के बाद जिस तरह करीब दो महीने लोगों को परेशानियां झेलनी पड़ीं और छोटे कारोबारियों के कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ा, उसके मद्देनजर तीसरी तिमाही के आंकड़ों को कुछ लोग स्वाभाविक ही शक की नजर से देख रहे हैं।
नवंबर और दिसंबर के महीनों में नगदी की किल्लत की वजह से न सिर्फ खुदरा बाजार में कारोबार घटा, बल्कि मोटर वाहनों की खरीद और जमीन-जायदाद के कारोबार में भी भारी गिरावट देखी गई। तैयार रिहाइशी कॉलोनियों में भवनों के दाम काफी नीचे आ गए, फिर भी खरीदारों में उत्साह नहीं दिखा। इसकी वजह से बैंकों के कर्ज पर बुरा असर पड़ा।
इस दौरान निजी कर्ज लेने वालों की संख्या तो घटी ही, वाहन और आवास कर्ज के रूप में भी बैंकों का कारोबार कमजोर रहा। औद्योगिक उत्पादन में भी लगातार कमी देखी गई। सभी बड़े औद्योगिक समूहों ने माना कि नगद लेन-देन बाधित होने की वजह से उनके उत्पादन पर असर पड़ा है। नोटबंदी के शुरुआती दिनों में बैंकों में नगदी न होने की वजह से रोजमर्रा के खर्चे भी बाधित हुए थे, बहुत सारी श्रमशक्ति पुराने नोट बदलने में जाया हो गई थी। तब सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने का रास्ता अख्तियार किया था। मगर उससे सामान्य लोगों को कोई लाभ नहीं मिल पाया। इन तथ्यों के बावजूद अगर नोटबंदी वाले दौर में विकास दर में बहुत मामूली गिरावट दर्ज हुई, तो इस पर हैरानी स्वाभाविक है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नोटबंदी की चौतरफा आलोचना को रोकने के लिए सरकार हर प्रयास करती रही है। ऐसे में तीसरी तिमाही के आंकड़े नोटबंदी के बुरे प्रभावों का खंडन करने वाले आए हैं, तो इसकी गणना को लेकर संदेह किया जा रहा है। महंगाई के आकलन में जिस तरह सिर्फ थोक खरीद के आधार पर आंकड़ा पेश कर बताया जाता रहा है कि महंगाई घटी या बढ़ी, उसी तरह विकास दर के आकलन में कोई फार्मूला अपनाया गया हो, तो उसे अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए उचित नहीं कहा जा सकता। सरकार का लक्ष्य विकास दर को आठ फीसद तक पहुंचाने का है, इसलिए तीसरी तिमाही के आंकड़े उसके लिए उत्साहजनक हो सकते हैं, पर अर्थव्यवस्था की हकीकत को जानते हुए इस दिशा में व्यावहारिक उपायों पर ध्यान देने की दरकार से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर लगातार जोर देती आ रही है, पर हकीकत यह है कि इस दिशा में उसे अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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