उत्तर प्रदेश से व्यवस्था परिवर्तन की पहल हो सकती है

राकेश दुबे@प्रतिदिन। 20 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश में रोज किसी न किसी तरह के अत्याचार का शिकार होने वाली आम महिलाओं की संख्या सैकड़ों में है। तो क्या उन सबको न्याय पाने के लिए योगी के निजी दौरे का इंतजार करना होगा? यह पहला बड़ा सवाल है। और दूसरा बड़ा सवाल है कि लगभग 3 दर्जन मंत्रालयों के स्वामी योगी आदित्यनाथ क्या हजारों पुलिस स्टेशनों, हजारों सरकारी अस्पतालों और लाखों सरकारी कार्यालयों में निजी दौरे कर मुख्यमंत्री के तौर पर अपने वृहत्तर दायित्वों का सही निर्वाह कर पाएंगे? और तीसरा और सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या योगी के बाद फिर अखिलेश या मायावती की सरकार आने पर गरीब और मजलूम लड़कियां बलत्कृत होकर ऐसिड पीने का पैशाचिक कृत्य झेलती रहेंगी।

हम भारतीयों की मानसिकता का  यह एक स्वाभाविक नतीजा है। हमारे अचेतन में “यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत” का संदेश इतना गहरे पैठ चुका है कि हम मान लेते हैं कि इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था, यहां के न्यायिक और पुलिसिया तंत्र का कुछ हो तो सकता नहीं है, अलबत्ता कोई मोदी या कोई योगी आकर यदि कहीं, कोई फर्क पैदा कर रहा है, तो यही बहुत है। लेकिन यदि हम लोक-विमर्श की दिशा थोड़ी बदल सकें तो मोदी-योगी का यही युग व्यवस्था परिवर्तन का सर्वोत्तम अवसर है।

नए मुख्यमंत्रियों या मंत्रियों द्वारा अस्पतालों और पुलिस स्टेशनों में औचक निरीक्षण की परंपरा पुरानी है। करीब 25 साल पहले जब लालू यादव पहली बार सरकार में आए थे, तो यह उनके गवर्नेंस स्टाइल का अभिन्न हिस्सा था। औचक निरीक्षणों में पुलिस वालों, डॉक्टरों और शिक्षकों को निलंबित करना और फिर मीडिया में बयान देकर उन्होंने खूब वाहवही बटोरी थी। लेकिन उसके बाद 15 सालों के उनके शासन में जो हुआ, इतिहास उसका गवाह है। दरअसल एक तरह से देखा जाए तो औचक दौरे और सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों का निलंबन एक शॉर्ट कट है, जिसमें आपको बिना कुछ किए अधिकतम मीडिया अटेंशन और लोगों की वाहवही मिल जाती है, लेकिन यह गवर्नेंस का स्टैंडर्ड तरीका नहीं हो सकता।

इसका मतलब यह भी नहीं कि योगी पिछले हफ्ते भर से जो कर रहे हैं, उसका महत्व नहीं है। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी सरकार ने प्रशासनिक अधिकार और आत्मसम्मान को जिस निचले स्तर तक पहुंचा दिया थे, उसे उठाने, उसमें आत्मविश्वास जगाने और झकझोरने के लिए पहले उसकी अथॉरिटी बहाल करना जरूरी था। लेकिन इसी बहाने योगी को प्रशासन के मनोविज्ञान के हकीकत का पोस्टमॉर्टम भी करने की जरूरत है। जिस गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ 25 सालों से रह रहे हैं, वहां मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार जाने की खबर भर से सड़कों के गड्ढे भरे गये ,वर्षों से बजबजा रहे नाले साफ हए , थानों और अस्पतालों की सफाई होने लगी । पर अभी इसका भाव अस्थायी है, उत्तर प्रदेश नहीं पूरे देश कोसुधार के स्थायी भाव की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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