
दूसरे शब्दों में, इससे इंटरनेट ऑफ थिंग्स का युग शुरू होगा। कई देशों ने इसका परीक्षण किया है और सिर्फ जापान ही है, जहां यह सेवा प्रायोगिक तौर पर शुरू हो सकी है। वैसे चीन भी इसका परीक्षण कर चुका है और अनुमान है कि साल 2022 में ही 5-जी सेवा वहां व्यावसायिक रूप से शुरू हो सकेगी। जापान में भी तत्काल इसका प्रयोग बड़े पैमाने पर हो सकेगा, इसमें संदेह है।
वैसे अभी 5-जी सेवा लायक मोबाइल फोन चिप को क्वालकॉम ने अभी कुछ महीने पहले ही तैयार किया है। 5-जी सेवा का उपयोग करने वाला कोई भी मोबाइल फोन न तो अभी बाजार में आया है और न ही लांच हुआ है। दुनिया भर में 5-जी को लेकर अभी जो सक्रियता है, उसके पीछे सोच यह है कि भविष्य चूंकि 5-जी का ही होगा, इसलिए बेहतर यह है कि अभी से ही उसके उपयोग और व्यावसायिक इस्तेमाल में महारत हासिल कर ली जाए। यूरोपीय संघ ने तो अपने योजनाएं यह सोचकर बनानी शुरू कर दी हैं कि जब यह सेवा शुरू होगी, तो यूरोप इस बाजार का अगुवा होगा। यह ऐसी दौड़ है, जिसमें कोई पिछड़ना नहीं चाहता।
अगर भारत भी इसी नजरिये से सोच रहा है, तो यह सचमुच स्वागत योग्य है। सिर्फ 4-जी ही कुछ हद तक एक अपवाद रहा है, वरना तकनीक को अपनाने के मामले में हम दुनिया से बहुत पीछे रहते थे। पूरी दुनिया में पुरानी पड़ चुकी तकनीक को तमाम नखरों के बाद अपनाने की हमारी आदत आगे बढ़ने का हमारा तरीका रही है। लेकिन आज का भारत यह जोखिम मोल नहीं ले सकता। संचार तकनीक के मामले में भारत लंबे समय से काफी आगे रहा है और यह बढ़त तभी बरकरार रह सकती है, जब हम भविष्य के औजारों को अपनाएं। यह नहीं हो सकता कि हम अपने यहां 3-जी और 4-जी से जूझ रहे हों और हमारी आईटी कंपनियां 5-जी उपकरणों के लिए एप्लीकेशन तैयार करें। यह सिर्फ बाकी दुनिया के साथ कदम मिलाने का मामला नहीं है, बल्कि यह अपनी बढ़त को और आगे ले जाने के लिए भी जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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