आतंकवाद, जाँच और कोर्ट की टिप्पणी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सुनील जोशी हत्याकांड में अदालत ने जो टिप्पणी की है, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। स्थानीय न्यायालय ने अपने फैसले में साफ कहा कि पुलिस और एनआईए दोनों ने किसी पूर्वाग्रह या अज्ञात कारण से प्रकरण में लचर ढंग से कार्रवाई की। उन्होंने इतने कमजोर साक्ष्य पेश किए जो आरोपियों को दोषी साबित करने के लिए अपर्याप्त थे। कोर्ट का इशारा साफ है कि हमारा सिस्टम खुद ही आरोपियों की मदद में लगा था। 

केंद्र सरकार के कुछ मंत्री जिस तरह समय-समय पर हिंदू आतंक की किसी संभावना को नकारते रहते हैं, उससे इस संदेह को बल मिलता है। 29 दिसंबर 2007 को संघ के पूर्व प्रचारक जोशी की बालगढ़ के चूना खदान क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। औद्योगिक थाना पुलिस जिला देवास ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया, एक साल जांच की और फाइल बंद कर दी। मगर देश के कई हिस्सों में हुए बम धमाकों में सुनील जोशी का नाम आने के बाद जून 2010 में पुलिस ने फिर मामले की जांच शुरू की। 2011 में केस एनआईए को भेज कर दिया गया।

प्रकरण की सुनवाई भोपाल की विशेष कोर्ट में हुई, लेकिन विशेष कोर्ट ने केस सत्र न्यायालय मप्र के क्षेत्राधिकार का होने से देवास कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया था। तभी से केस की सुनवाई देवास कोर्ट में चल रही थी। इस मामले ने एनआईए जैसी संस्था पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। इसकी छवि भी सीबीआई की तरह केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने वाली एजेंसी की हो गई है। इसी कड़ी के एक अन्य मामले में भी एनआईए ने जिस तरह मेहरबानी दिखाई है, वह पूरा देश देख रहा है। उस केस में भी जिस तरह जांच की दिशा बदलती जा रही है, उससे संदेह गहरा रहे हैं। दो साल पहले एक पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने तो स्पष्ट आरोप लगाया था कि एनआईए उन पर मामले में नरमी बरतने के लिए दबाव बना रही है।

दुनिया भर में हो रही आतंकी गतिविधियों की निंदनीय हैं। ऐसे आरोपों से घिरे लोगों के खिलाफ हमारा सिस्टम सुस्त दिखता है। दहशतगर्दी के हर मामले को पूरी पारदर्शिता के साथ निपटाना होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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