प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कमलनाथ ने शुरू कर दीं तैयारियां

भोपाल। छिंदवाड़ा के सांसद कमलनाथ मप्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए लंबे समय से जोड़ तोड़ लगा रहे हैं। अभी इस मामले में हाईकमान ने कोई फैसला नहीं किया है लेकिन भोपाल स्थित कमलनाथ के सरकारी आवास पर हलचल बढ़ गई है। इसे चुनावी वार रूम की तरह बनाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष बनते ही कमलनाथ यहां से शिवराज सरकार पर हमले शुरू कर देंगे। कमलनाथ समर्थक इस बंगले को कांग्रेस के लिए लकी बता रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में विवेक तन्खा के लिए यहीं से जीत सुनिश्चित की गई थी। यह दीगर बात है कि शहडोल उपचुनाव में तमाम मुफीद परिस्थितियां होने के बावजूद कमलनाथ जीत सुनिश्चित नहीं कर पाए थे। 

कमलनाथ क्यों हैं उचित दावेदार
कमलनाथ केंप का दावा है कि हाईकमान इसलिए मन बना रहा है, क्योंकि लगभग चार दशक से कमलनाथ मप्र की राजनीति में हैं। उनको कमान सौंपे जाने से गुटबाजी भी कम होगी। यही नहीं कांग्रेस को जितने भी संसाधनों की जरूरत होगी, वह जुटाने में भी कमलनाथ सक्षम हैं। वे ऐसे नेता हैं जिनके साथ सभी गुट सहज होकर काम कर सकते हैं क्योंकि उनका अपना कोई बड़ा गुट नहीं। प्रदेश में अभी भी दिग्विजय सिंह और स्व.अर्जुन सिंह समर्थकों की संख्या बड़ी, जिन्हें कमलनाथ को अपना नेता मानने में किसी प्रकार की असहजता नहीं होगी। सिंधिया के भी कमलनाथ से मधुर संबंध हैं। अरुण यादव का जहां तक सवाल है तो उनके भी जितने समर्थक हैं वे कभी न कभी अर्जुनसिंह के साथ रहे हैं, क्योंकि स्व. सुभाष यादव भी इसी गुट के थे। इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हाईकमान प्रदेश की गुटबाजी कम करने के लिए कमलनाथ को मौका दे सकती है।

क्षेत्रीय क्षत्रप शिवराज का सामना नहीं कर पाएंगे
कमलनाथ केंप की ओर से बार बार दोहराया जा रहा है कि दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया आदि तमाम क्षत्रप एकजुट नहीं हो सकते और शिवराज सिंह का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। इनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जो दूसरे को अपना नेता मान ले। ऐसे में कमलनाथ के साथ सब सहज हो जाएंगे। 

अरुण यादव कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कर पाए 
टीम राहुल के इंप्रेशन में लोकसभा के पराजित प्रत्याशी अरुण यादव मप्र कांग्रेस के प्रेसीडेंट भले ही बन गए परंतु आज तक वो अपनी कोई पहचान नहीं बना पाए हैं। अपने इतने लम्बे कार्यकाल में वो ना तो कांग्रेस में जान फूंकने का प्रयास करते दिखे और ना ही सरकार पर कोई हमला कर पाए। उनके आने के बाद भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस की किस्मत सुधर नहीं पाई और उनके कार्यकाल में कांग्रेस न केवल लोकसभा चुनाव में पराजित हुई बल्कि नगरीय निकायों के चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन दयनीय रहा।

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