प्रमोशन में आरक्षण: सरकार ने शुरू की सशर्त पदोन्नति की प्रक्रिया

भोपाल। प्रमोशन में रिजर्वेशन का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। फैसला नहीं आया इसलिए मप्र में सभी प्रमोशन के मामले लटके हुए थे। करीब 15 हजार कर्मचारी/अधिकारी बिना प्रमोशन के लिए रिटायर हो गए लेकिन अब मप्र शासन ने सशर्त प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उद्योग एवं वाणिज्य तथा पीडब्ल्यूडी के 2 अफसरों को प्रमोशन दे दिया गया है। स्वभाविक है,  इसी आधार पर अब सभी प्रमोशन हो सकेंगे। यदि सरकार अब ऐसा करने से इंकार करती है तो एक नए मुकदमे के लिए उसे तैयार रहना होगा। 

यह है मामला
हाईकोर्ट ने प्रदेश में आरक्षित वर्ग के प्रमोशन से जुड़े सिविल सर्विसेज प्रमोशन रूल्स 2002 को अवैधानिक करार दे दिया है। इस नियम के तहत प्रमोशन में 36% तक आरक्षण मिलता है। सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। शासन की मानें तो जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले के बाद से अब तक प्रदेश में बीस हजार से अधिक कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। इनमें से करीब 15 हजार कर्मचारियों को 30 अप्रैल 2016 के बाद पदोन्नति मिलनी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दे रखे हैं। लिहाजा, आरक्षित वर्ग और सामान्य वर्ग दोनों परेशान है।

गौरतलब है कि जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर पहली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाने को कह दिया था। इसके बाद से प्रदेश में प्रमोशन पर रोक लगी है। इसी बीच आलोक नागर को उप पंजीयक से पंजीयक, फर्म्स एवं संस्थाएं और पीडब्ल्यूडी में बीएल जायसवाल को अधीक्षण यंत्री से मुख्य अभियंता पद पर प्रमोशन दे दिए गए। आदेशों में लिखा गया है कि यह प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील के फैसले के अधीन रहेगी।

इससे सवाल खड़े हो गए हैं कि जब दो लोगों को सशर्त प्रमोशन देना था तो 15000 को क्यों ऐसे ही रिटायर कर दिया गया, जबकि सभी विभागों में प्रमोशन की प्रक्रिया पर रोक है। हर माह लगभग तीन हजार कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जायसवाल के प्रमोशन प्रमोशन प्रकरण में छानबीन समिति की बैठक मार्च 2016 में यानी फैसले के पहले और नागर की डीपीसी बैठक मई 2016 को हुई। जायसवाल का प्रमोशन आदेश 12 मई को निकाला गया, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा और नागर का आदेश 14 जून को निकाला गया। यानी दोनों ही आदेश जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश के बाद निकाले गए।

कोर्ट में ये दलील रख सकती है सरकार
सरकार मप्र में 30 अप्रैल 2016 के पहले की व्यवस्था फिर से बहाल करने की सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाने जा रही है। यानी ‘मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002’ के तहत प्रमोशन किया जा सके। इस मामले की सुनवाई 24 जनवरी से शुरू होने की संभावना है। ऐसी भी कोशिश हो रही है कि कर्मचारियों के गुस्से को रोकने के लिए नौ महीने बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट से सशर्त प्रमोशन करने की अनुमति देने का आग्रह कर सकती है। 
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प्रमोशन तो नियम और प्रक्रिया से ही होते हैं और होने चाहिए। यदि इसके विपरीत कोई प्रमोशन होते हैं तो शासन के संज्ञान में आएंगे। इसका परीक्षण कराकर जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
लालसिंह आर्य, राज्यमंत्री, सामान्य प्रशासन, मप्र

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