
क्रिमिनल्स हों या नक्सली, इनके नाम भर से कांप उठते थे। डीसी सागर की छवि महकमे में फिल्मी पुलिस वाले जैसी है। आईजी होने के बाद भी वे ऑफिस में बैठने के बजाय ज्यादातर वक्त फील्ड पर दिखाई देते थे। नक्सल इलाका हो, तो पुलिस को आधुनिक हथियारों के साथ-साथ पॉवरफुल वाहनों की जरूरत भी होती है। हर कदम पर जहां नक्सली खतरा हो, वहां ये जान खतरे में डालकर कभी साइकिल से तो कभी नाव से गश्त करने निकल जाते थे। कभी वे बंदूक तानकर जंगल में जवानों के बीच पहुंच जाते, तो कभी खुद चेक पोस्ट पर चेकिंग करने लगते।
1992 बैच के आईपीएस हैं डीसी सागर
1992 बैच के आईपीएस डीसी सागर ने IPS सर्विस मीट (जनवरी, 2016) के दौरान बताया था कि, 'दफ्तर में बैठकर पुलिसिंग नहीं हो सकती। मैदानी अमले को दुरुस्त रखने के लिए साहब बनकर काम नहीं किया जा सकता, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना पड़ता है।'
नक्सलियों के टारगेट पर थे, डीजीपी ने सम्मानित किया था
मार्च 2016 में आईजी सागर को डीजीपी ने सम्मानित किया था। उन्होंने एक लड़की को अपहृतों के इलाके में घुसकर मुक्त कराया था। इस आॅपरेशन में जान का जोखिम था। श्री सागर नक्सलियों के निशाने पर भी थे। नक्सली उनकी हत्या करने की योजना बना रहे थे। कई बार नक्सलियों की प्लानिंग लीक भी हो गई थी।