रमज़ान खान/बटियागढ़। कंधों पर परिवार पालने का बोझ, गरीबी, बेबसी और लाचारी से मजबूर होकर मजदूरी के लिए दूसरे शहर को पलायन और मौत, ये शब्द अपने आप में गरीबी की वो तस्वीर बतला रही है, जो सिर्फ तस्वीर नही, एक हकीकत है। हम बात कर रहे हैं दमोह जिले के बटियागढ़ की जहां के आदिवासी तबके के लोग अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए, छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के मैदनीपुरा गांव में मजदूरी करने गए थे। जहां एक दर्दनाक हादसे में 3 महिलाओं सहित 1 मासूम बच्चे की अकाल मौत हो गई।
जब सोमवार को इनके घरों से एक साथ एक समय पर 4 अर्थियां उठी तो गांव के लोग भी अपने आंसू नही रोक पाये। गोदी में 05 साल के मासूम अंशू की लाश उसके पीछे लोगों के कंधों पर चलती 3 अर्थियों को देख, पूरे बटियागढ़ गांव में मातम सा फ़ैल गया। नजारा ही कुछ ऐसा था के लोगों के दिल पसीज गये, मृतकों के परिवार वालों के दुःख का ठिकाना ही रहा, सभी का रो रोकर बुरा हाल था।
घटना सुनते ही पूरे आदिवासी मोहल्ले में किसी के भी घर पर चूल्हा नही जला, मोहल्ले के लोग मृतकों के घर दुःख बाँटने रात भर बैठे रहे। इन सभी पहलुओं के बीच एक पहलू ये भी है, की अगर इन मजदूरों को अपने ही गांव में मजदूरी मिलती तो इनको दूसरे गांव पलायन कर मजदूरी करने नही जाना पड़ता, ये सभी अपने घर पर परिवार के साथ रहते, लेकिन शासन की बेरुखी के कारण इन्हें मजदूरी करने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ रहा है। क्षेत्रीय विधायक लखन पटेल भी अंतिम यात्रा में पहुचें और अपनी शोक संवेदानाएं व्यक्त करते हुए मृतकों के परिवार वालों को जल्द ही आर्थिक मदद दिलाने की बात कही।