मप्र में अतिथि विद्वानों की नियुक्ति में हुई है मनमानी: कांग्रेस

भोपाल। मप्र कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा ने मप्र में हुईं अतिथि विद्वानों की नियुक्ति प्रक्रिया में मनमानी और दोहरे मापदण्डों को अपनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने मांग की है कि इस मामले की जांच कर दोषियों को दण्डित किया जाना चाहिए। 

आज यहां जारी अपने बयान में मिश्रा ने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा यह जानते हुए कि प्रदेश भर में 60 प्रतिशत सहायक प्राध्यापकों, 75 प्रतिशत प्राचार्य, ग्रंथपाल व क्रीडा अधिकारी के पद रिक्त हैं। बावजूद उनकी नियुक्ति से संदर्भित जो विज्ञापन मई-जून-2016 में ही जारी किया जाना था, उसे शिक्षण सत्र प्रारंभ होने के सवा महीने बाद 8 अगस्त, 16 को जारी किया गया। इस विज्ञापन में 9, 10, 11 और 12 सितम्बर, 16 को प्राप्त अभ्यावेदनों का सत्यापन किया जाना था, जबकि 9-10 सितम्बर को पोर्टल ही बंद रहा, 11 एवं 12 सितम्बर को मात्र दो दिनों में ही करीब 50 हजार प्राप्त अभ्यावेदनों का सत्यापन कर लिया गया और दोहरे मापदण्डों को अपनाते हुए मनमाने ढंग से नियुक्तियां कर दी गई, जिसमें पर्याप्त वांछित योग्यताओं वाले कई प्रतिभावान अभ्यार्थी मुख्य धारा से बाहर कर दिये गये। 

श्री मिश्रा ने कहा कि उक्त अवधि में उच्च शिक्षा विभाग के शीर्ष अधिकारी, अतिरिक्त संचालकों, अग्रणी महाविद्यालयों के प्राचार्यों एवं अभ्यार्थियों की समस्याओं के समाधान के लिए अनुपलब्ध रहे, अनुत्तरित रहे अथवा अपना मोबाइल फोन बंद रखा या उठाया ही नहीं। ऐसा क्यों और किसलिए किया गया। विचारणीय प्रश्न है? मात्र 4 माह के अध्यापन हेतु आमंत्रित किये जाने वाले अतिथि विद्वानों, जिन्हें मात्र 15,000/- रूपये प्रतिमाह का मानदेय दिया जाना होता है, उन्हें ऐसी जटिल, अस्पष्ट और दोहरी मानदण्ड वाली प्रक्रियाओं का उपयोग कर उच्च शिक्षा विभाग ने समूचे शिक्षण सत्र में अध्यापन व्यवस्था की हत्या कर दी है। इसकी तमाम वजह सार्वजनिक कर दोषियों के विरूद्व कार्यवाही की जाना चाहिए। 
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