
हुर्रियत की यह हरकत नई नहीं है। जब भी केंद्र से घाटी में अमन की कोई पहल होती है, वह उसमें खलल डालने की कोशिश करता है। न तो वह राजनीति की मुख्यधारा में आना चाहता है और न बातचीत के जरिए समस्या के समाधान को तैयार दिखता है। अच्छी बात है कि कश्मीर के हालिया हालात पर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने एकजुटता दिखाई और उनके प्रतिनिधि घाटी के हालात का जायजा लेने, वहां के लोगों से बातचीत करने गए। इससे अलगाववादी संगठनों का मनोबल कुछ कमजोर होगा। पिछले दिनों कश्मीर के विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली आया था और प्रधानमंत्री से मिल कर घाटी में राजनीतिक पहल की गुजारिश की थी। उसके बाद ही केंद्र से यह प्रतिनिधिमंडल वहां गया है। इससे घाटी के लोगों में विश्वास बहाली की उम्मीद जगी है।
ऐसे में कश्मीर के अवाम का दिल जीतना जरूरी है। उनमें यह भरोसा पैदा करना आवश्यक है कि केंद्र सरकार और सभी राजनीतिक दल उनके साथ खड़े हैं। कश्मीर को लेकर राजनीतिक दलों के बीच मतभेद नहीं है। जब-जब घाटी में हालात तनावपूर्ण हुए हैं, लोगों का केंद्र पर से विश्वास डिगा है, सर्वदलीय एकजुटता से वहां के लोगों का भरोसा जीतने में मदद मिली है। अलगाववादी संगठनों को इसी तरह अलग-थलग किया जा सकता है। कश्मीर के लोगों से शुरू हुआ संवाद का सिलसिला बना रहना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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