संघ प्रचारक पिटाई कांड: कुछ सुलगते सवाल

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भोपाल। बालाघाट के बैहर थाने में हुए संघ प्रचारक सुरेश यादव की कथित मारपीट के मामले में संघ के जमीनी स्वयं सेवक आंदोलित हैं। सरकार ने आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ 307 जैसा गंभीर मुकदमा दर्ज कर लिया है। प्रदेश भर में प्रदर्शन भी हो रहे हैं। भाजपा की कार्यसमिति बैठक में मुद्दा गर्माया रहा। शिवराज सिंह विरोधियों ने इस मुद्दे का इस्तेमाल शिवराज सिंह पर निशाना साधने के लिए किया तो कुछ दूसरे कथित बुद्धिजीवियों ने संघ प्रमुख मोहन भागवत की चुप्पी को भी निशाना बनाया, लेकिन इस सबके बीच कुछ सवाल हैं जो अब तक अनुत्तरित हैं।

कहा जा रहा है कि प्रचारक सुरेश यादव ने औवेसी के खिलाफ कोई टिप्पणी की थी। आंदोलित हो रहे सोशल मीडिया एक्टिविस्ट उस टिप्पणी के सभी स्क्रीनशॉट शेयर क्यों नहीं कर रहे, जो सुरेश यादव ने की थी। जबकि सोशल मीडिया में बात बात पर सबूत टैग किए जाते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि सबको डर सता रहा है, यदि सुरेश यादव के शब्दों को हूबहू लिख दिया तो वो भी कार्रवाई की जद में आ जाएंगे। 

उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि संघ प्रचारक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ स्तर पर अनुमति ली गई थी। सुरेश यादव को मालूम था कि मामला दर्ज हो गया है, फिर क्यों वो खुद पुलिस के सामने प्रस्तुत नहीं हुए और संघ कार्यालय में बैठक के बहाने लोगों को जोड़ाकर खुद को गिरफ्तारी से बचाने का प्रयास किया। 

बैहर में बंटे पर्चों में दावा किया गया है कि सुरेश यादव को थाने में बांधकर नहीं रखा गया था और इसी का फायदा उठाते हुए वो मौका पाकर भाग निकले। सवाल यह है कि जब सरकार आपकी अपनी है, तो भागने की जरूरत क्या थी। जरा सोचिए, यदि सुरेश यादव फरार हो जाते तो मीडिया में किस तरह की खबरें आतीं। 

सारी रात सुरेश यादव थाने में रहे। उनके कुछ साथी थाने के बाहर धमाल मचाते रहे। आरोप है कि उन्होंने पहले पुलिस को गंदी गंदी गालियां दीं। धमकियां दीं। इसके बाद मामले को साम्प्रदायिक रंग दे दिया। इस दौरान उन्होंने किसी भी वरिष्ठ भाजपा नेता को मौके पर नहीं बुलाया। सवाल यह है कि जब संघ के एक इशारे पर पूरी भाजपा परेड करने लगती है तो सुरेश यादव ने भाजपा के विधायक और दूसरे जनप्रतिनिधियों की मदद क्यों नहीं ली। 

सोशल मीडिया पर टीआई जियाउल हक को टारगेट करते हुए मनगढ़ंत कहानियां प्रचारित की जा रहीं हैं जबकि मौके पर एडिशनल एसपी राजेश शर्मा, वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशानुसार टीम को लीड कर रहे थे। 

कथित पिटाई में घायल सुरेश यादव को जिस अस्पताल में दाखिल कराया गया है वो डॉक्टर भी संघ का स्वयंसेवक है। उन्हें शासकीय अस्पताल में दाखिल क्यों नहीं कराया गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि मामूली चोटों पर प्लास्टर चढ़ाकर मामले को गंभीर बनाने की कोशिश की जा रही है। 
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