दलित एक्ट के खिलाफ माराठा मोर्चा में शामिल हुआ मंत्री का परिवार

मुंबई। दलित एक्ट में संसोधन की मांग को लेकर क्रांति दिवस 9 अगस्त से शुरू हुआ मराठा मोर्चा का प्रदर्शन लगातार जारी है। बिना किसी नेता के शुरू हुआ यह मोर्चा पहले केवल मराठाओं तक सीमित था परंतु अब सभी वर्गों का समर्थन मिलने लगा है। लाखों लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। इनमें, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर और युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। केंद्रीय मंत्री सुभाष भामरे का परिवार में इस मोर्चा में शामिल हो गया है। 

महाराष्ट्र में जारी मराठा आंदोलन में बुधवार को धुलिया में केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे के परिवार ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। हालांकि इस मोर्चे में डॉ. भामरे शामिल नहीं थे लेकिन उनका पूरा परिवारिक कुनबा मोर्चे को समर्थन देने के लिए सड़क पर उतर पड़ा था। 

चिलचिलाती धूप में लाखों की संख्या में जुटे मराठा समाज के लोगों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। लेकिन, इस दौरान 150 लोग बीमार हो गए जिन्हें नजदीक के अस्पतालों में भर्ती कराया गया। उपचार के बाद उन्हें घर भेजा गया।

अहमदनगर के कोपर्डी निर्भया कांड के बाद नौ अगस्त क्रांति दिवस को औरंगाबाद से शुरू हुए मराठा आंदोलन पूरे राज्य में फैल गया है। अब तक सांगली, सातारा, अमरावती, नासिक, नवी मुंबई, पुणे, अहमदनगर, बीड, उस्मानाबाद और धुलिया सहित राज्य के 36 जिलों में से 14 जिलों में मराठा मूक मोर्चे का आयोजन किया जा चुका है। 

बुधवार को धुलिया में मराठा मूक मोर्चा आयोजित किया गया जिसमें लाखों की भीड़ इकट्ठा हुई। इस मोर्चे में जिले के 400 से ज्यादा वकील, डॉक्टर, युवा और बुजुर्ग नागरिकों ने भी हिस्सा लिया जिसमें रक्षा राज्यमंत्री डॉ. भामरे का परिवार भी शामिल था। 

मोर्चे में 105 साल के नारायण पाटिल और 95 वर्षीय उनकी पत्नी सोजाबाई भी पहूंची। मोर्चे में शामिल मराठा समाज के  लोग कोपर्डी कांड के दोषियों को मृत्यु दंड की मांग कर रहे थे।

यह है प्रमुख मांग
मराठाओं की मांग है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) कानून रद्द किया जाए क्योंकि इसका घोर दुरुपयोग हो रहा है। 
दलितों के खिलाफ होने वाले हर अपराध को में इस कानून के तहत मामला दर्ज हो जाता है चाहे वह जातिवाद से प्रेरित हो या ना हो। 
दलित इस कानून का ज्यादातर दुरुपयोग करते हैं और लोगों को डराने व धमकाने के लिए भी इस कानून का जिक्र करते हैं। 
इस कानून के तहत मामला दर्ज करने से पहले विवेचना नहीं की जाती कि अपराध जातिवाद से प्रेरित था या नहीं। दलितों के प्रति होने वाला हर अपराध इसी कानून के तहत दर्ज कर लिया जाता है। 
इस कानून के तहत दलित पीड़ितों को मुफ्त वकील, अच्छा इलाज और बाकी सारी सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए परंतु अपराधी के खिलाफ एक अतिरिक्त धारा बढ़ाना गलत है। इसे रद्द किया जाना चाहिए। 
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