
बलूचिस्तान नाम का क्षेत्र बड़ा है और यह ईरान (सिस्तान व बलूचिस्तान प्रांत) तथा अफ़ग़ानिस्तान के सटे हुए क्षेत्रों में बँटा हुआ है। यहां की राजधानी क्वेटा है। यहाँ के लोगों की प्रमुख भाषा बलूच या बलूची के नाम से जानी जाती है। 1944 में बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का विचार जनरल मनी के विचार में आया था पर 1948 में ब्रिटिश इशारे पर इसे पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। 1970 के दशक में एक बलूच राष्ट्रवाद का उदय हुआ जिसमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से स्वतंत्र करने की मांग उठी। यह प्रदेश पाकिस्तान के सबसे कम आबाद इलाकों में से एक है।
1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो पाकिस्तान के साथ बलूचिस्तान ने भी 15 अगस्त 1947 को अपनी आजादी का दिन घोषित कर दिया था। वह नो भारत में शामिल हुआ और ना ही पाकिस्तान में। पाकिस्तान लगातार दबाव डालता रहा कि बलूचिस्तान उसका हिस्सा बन जाए। आखिरकार अप्रैल 1948 को ऐसा हो गया।
तब से बलूच अलगाववादियों ने पाक सरकार के खिलाफ गृह युद्ध छेड़ रखा है। बड़ी संख्या में बलूच नेता अफगानिस्तान में रहकर इसे अंजाम दे रहे हैं। अफगानिस्तान उनकी मदद करता है। पाकिस्तान वहां के लोगों पर आए दिन आत्याचार करता रहता है। कानून व्यवस्था और शांति के नाम पर लोगों के अपहरण और हत्या किए जाते हैं। वहां मीडिया के पहुंचने पर पाबंदी है।
बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है। यहां यूरेनियम, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, तांबा और कई अन्य धातुओं के भंडार हैं। पाकिस्तान इसका फायदा उठा रहा है, लेकिन बलूचिस्तान के लोगों का विकास नहीं हो रहा। अब तो पाकिस्तान चीन को वहां ला रहा है और खनन का 75 फीसदी तक फायदा उसे पहुंचा रहा है।