क्या करें बेचारी महबूबा ?

राकेश दुबे@प्रतिदिन। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पीड़ा और छटपटाहट साफ बताती है कि उन्हें पूरी तरह तो नहीं पर उन सालों का अफ़सोस है। जब वे सरकार से बाहर थी और उन लोगो की आवाज़ बुलंद करती थी, जो आज उन पर पत्थर उछाल रहे हैं।

पाकिस्तान और कश्मीर में हिंसा कराने वालों पर बरसते हुए दो बार महबूबा को देश ने देखा है। हालांकि उनकी बातों से यह संकेत तो मिलता है कि वो पाकिस्तान के साथ भारत के बातचीत के पक्ष में हैं, लेकिन उनको यह भी पता है कि मौजूदा हालात में यह मुमकिन नहीं। पाकिस्तान के संदर्भ में सरकार की नीति है कि केवल पाक अधिकृत कश्मीर पर बात होगी। यहीं उनकी दुविधा
है। अब वह कहतीं हैं कि अब पहल तो पाकिस्तान को ही करनी होगी। हमारे वजीर-ए-आजम उनके यहां गए और हमारे गृहमंत्री के साथ वहां जो व्यवहार हुआ वह नहीं होना चाहिए था। अगर उनको बातचीत करनी थी तो गृहमंत्री वहां थे। वे कर सकते थे।

मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें कश्मीर में शांति तो चाहिए। इसका रास्ता क्या हो सकता है? इसका कोई सूत्र उनके पास नहीं है। इसलिए वह मीडिया से भी आग्रह करतीं हैं कि आप लोग भी सहयोग कीजिए। यह अच्छी बात है कि महबूबा को हिंसा की साजिश रचने वालों की पहचान हो गई है। महबूबा और उनके पिता स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद अलगाववादियों, आतंकवादियों एवं पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाते रहे हैं।

अब महबूबा का मौजूदा तेवर थोड़ा अलग संकेत देता है, वह कहतीं हैं कि जो लोग बच्चों को हिंसा के लिए उकसा रहे हैं और कह रहे हैं कि पत्थर मारो बस आजादी मिल जाएगी वे कश्मीरियों के दोस्त नहीं हो सकते। प्रश्न है कि उन्हीं की नजर में अगर पाकिस्तान कश्मीर में हिंसा के लिए जिम्मेवार है और अलगाववादी घाटी में बैठकर हिंसा करा रहे हैं तो फिर उनसे बातचीत कैसे हो सकती है? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका जवाब महबूबा को स्वयं पता नहीं है।

प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि संविधान के दायरे में बातचीत और समाधान की हर मुमकिन कोशिश होगी। संविधान का दायरा आते ही अलगाववादी बातचीत के दायरे से बाहर चले आते हैं, क्योंकि वह संविधान को नहीं मानते।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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