राकेश दुबे@प्रतिदिन। जजों की नियुक्ति में सरकार के ढीले रवैये पर चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर केंद्र से आर-पार करने की तैयारी में हैं। इसकी बानगी उनके इस बयान से लगती दिखती है, जब उन्होंने कहा है कि सरकार आठ महीने से कॉलेजियम की तरफ से भेजी गई सिफारिशों पर अमल नहीं कर रही है और इसे अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गौरतलब है कि देश में जजों की कमी और लंबित मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब साढ़े तीन करोड़ से ज्यदा मुकदमे लंबित हैं और हाईकोर्टों में 43 फीसद जजों की कमी है।
स्वाभाविक है कि दबाव अदालतों पर है और मुख्य न्यायाधीश इससे आश्वस्त दिखते हैं। एक वक्त ऐसा भी था, जब लंबित केस को लेकर मुख्य न्यायाधीश सार्वजनिक मंच पर अपने आंसू नहीं रोक सके थे। और अब कह रहे हैं कि हमारे दखल देने का समय आ गया है। दरअसल, यह आक्रामकता केंद्र सरकार के ठंडे रुख के बाद दिखी है। चीफ जस्टिस के इस हमलावर रुख के निहितार्थ भी हैं। यह सरकार को सख्त संदेश है कि आप हमारे मामले को ज्यादा दिनों तक बेवजह लटकाकर नहीं रख सकते। अगर आपको नामों को लेकर आपत्ति है, तो हमसे जिक्र करें। वैसे, न्यायपालिका और विधायिका की टकराहट पहले भी होती रही है। मगर इस बार जितना कठोर रुख सुप्रीम कोर्ट का दिख रहा है, उससे सरकारी अमले की फजीहत भी हो सकती है।
यह बिल्कुल तर्कसंगत बात है कि अगर जजों की यथोचित भर्ती होगी तो केस जल्द-से-जल्द निपटते जाएंगे। इससे सरकार और समाज के स्तर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. साथ ही, जनता के दिलो-दिमाग में न्यायपालिका का इकबाल बुलंद होगा। इस टकराव और मनमुटाव से कहीं-न-कहीं चीजें उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती हैं। जहां पहुंचने की जरूरत आज के वक्त में देश को है। जब देश में न्यायपालिका का काम सरकार से बेहतर समन्वय के सहारे आगे बढ़ता है, तो विदेश तक में सरकार की स्थिति मजबूत होती है। सरकार को इस तथ्य को संजीदगी से समझने की जरूरत है। जब न्यायपालिका सुकून से होगी, तभी इसकी अनुगूंज भी सुनाई देगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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