Gwalior: लोकायुक्त मेहरबान तो आरक्षक भी पहलवान

भोपाल। जी हां, परिवहन विभाग के प्रधान आरक्षक रविन्द्र जैन जिन्हे कुछ समय पहले तक लोकायुक्त ने करोड़ों की काली कमाई करने वाला घोषित करके मीडिया में बदनाम किया था, अब बेदाग बताए जा रहे हैं। जांच ऐजेन्सी वही है, लोकायुक्त। छापे से पहले की जांच के नतीजे कुछ और थे, बाद के नतीजे कुछ और हैं। कोर्ट के आदेश पर इस मामले में तीसरी बार जांच हुई परंतु 'लोकायुक्त मेहरबान तो आरक्षक भी पहलवान' दूसरी बार खात्मा रिपोर्ट पेश कर दी गई है। 

बात करीब 5 साल पुरानी है। ग्वालियर की लोकायुक्त पुलिस ने शिकायतों के आधार पर परिवहन विभाग के प्रधान आरक्षक रविन्द्र जैन की खुफिया छानबीन की थी। इस जांच में हेडकांस्टेबल के पास मोटी काली कमाई के प्रमाण प्राप्त हुए थे। इसी आधार पर लोकायुक्त पुलिस ने श्री जैन के यहां छापामार कार्रवाई की। इस कार्रवाई के बाद लोकायुक्त ने मीडिया को बताया कि उनके यहां आय से अधिक संपत्ति के प्रमाण मिले हैं। 

इस छापामारी के बाद शुरू हुई लोकायुक्त की दूसरी जांच। यह जांच कुछ इस तरह से हुई कि आय से अधिक संपत्ति के तमाम सबूत गायब हो गए। गणना में कुछ ऐसा गुणा भाग हुआ कि काली कमाई वाले आरक्षक रविन्द्र जैन बेदाग हो गए। लोकायुक्त ने न्यायालय में खात्मा रिपोर्ट पेश कर दी। जब आपत्तियां उठीं तो कोर्ट ने एक बार फिर जांच करने के आदेश दिए, लेकिन लोकायुक्त तो वही था। जांच भी वही रही। थोड़ा बहुत फेरबदल कर फिर वही रिपोर्ट पेश कर दी गई। अब विशेष न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई होगी।

सवाल यह है कि एक ही लोकायुक्त 2 तरह की जांच कैसे कर सकता है। एक जांच में कर्मचारी के पास आय से अधिक संपत्ति थी। दूसरी में कर्मचारी बेदाग साबित हो रहा है। विचारणीय यह है कि दोनों में से कोई एक जांच निश्चित रूप से गलत है तो फिर उस जांच अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही जिसने गलत जांच करके लोकायुक्त का समय बर्बाद कराया और एक ईमानदार कर्मचारी को बदनाम करवा दिया। 
If you have any question, do a Google search

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!